Kya Karegi Hawa !

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"ग़ज़ल भारतीय संस्कृति की एक खूबसूरत ऐतिहासिक विधा है, यह सूफ़ी शायर अमीर खुसरो के साथ 14वीं सदी से शुरू होकर वक़्त का एक लम्बा सफ़र पूरा कर चुकी है। इसने सूफ़ी-सन्तों की तरह इस देश की धड़कन को भी दर्शाया है और इस देश की मिट्टी से तिलक लगाया है। आज की ग़ज़ल अपने युग की धूप-छाँव का आईना है। डॉ. प्रवीण शुक्ल ने अपनी ग़ज़ल को अपनी ज़िन्दगी के सफ़र का हमसफ़र बनाया है। वह अपने ज़माने को अभिव्यक्त करने के लिए ग़ज़ल के ‘फ़ार्म' को अपनाए हुए हैं। उनकी उम्र की तरह उनकी गज़ल चौंचाल भी है तो कहीं गुम से निढाल भी है और कहीं ख़ुशी में खुशहाल भी है। उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों को अपनी शायरी का विषय बनाया है। उनकी शायरी में जीवन के विभिन्न इन्द्रधनुषी रंगों की छटा एक साथ दिखाई पड़ती है। मैं उनकी इस सुन्दर रचनात्मकता के लिए बधाई देता हूँ। उनकी क़लम में नये मौसमों की ताज़गी वाकई क़ाबिले तारीफ़ है। -निदा फ़ाज़ली ★★★ ग़ज़ल कविता की वह विधा है जिससे मोहब्बत करते हुए उम्र का आईना नहीं देखा जाता। ग़ज़ल रेशम के द्वारा काँटों को फूल बनाने का ऐसा मुश्किल काम है जिसके लिए जवान ख़ून और आँखों की तेज़ रौशनी की ज़रूरत पड़ती है। डॉ. प्रवीण शुक्ल नये ख़ून, नयी शब्दावली और नये लहज़े के कवि हैं । उन्होंने अपने शे'रों में ज़िन्दगी के खट्टे-मीठे अनुभवों को शामिल करके ख़ूबसूरत ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी ग़ज़लों में ज़िन्दगी जीती हुई दिखाई देती है। अपने समय और समाज से हटकर कोई भी शायर बड़ी शायरी नहीं कर सकता। डॉ. प्रवीण शुक्ल की शायरी पूरी तरह ज़मीन से जुड़ी हुई है और हमारी शायरी की रिवायतों पर खरी उतरती है । घर, समाज और जीवन की कड़वी सच्चाइयों को सलीक़े से अपनी ग़ज़लों की फूलमाला में पिरोने के लिए मैं डॉ. प्रवीण शुक्ल को मुबारकबाद देता हूँ, और आशा करता हूँ कि वह ग़ज़ल के ख़ज़ाने में अपने शे'रों से और भी इज़ाफ़ा करेंगे। -मुनव्वर राना "
ISBN
9789350729182
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