Mahabharat Ki Sanrachna
महाभारत की संरचना -
'महाभारत की संरचना' आलोचक व गद्यशिल्पी बच्चन सिंह की एक अनूठी पुस्तक है। इस सन्दर्भ में बच्चन सिंह के शब्द हैं—'महाभारत' पढ़ता रहा हूँ और महाभारत मुझे पढ़ता रहा है। यह पढ़ाई अविराम चलती रहेगी। एक-दूसरे के पढ़ने के द्वन्द्वात्मक सम्बन्धों की फलश्रुति है यह पुस्तक अन्य ग्रन्थ हमें एक मार्ग से ले जाकर किसी गन्तव्य पर छोड़ देते हैं या मार्ग पर प्रश्नचिह्न लगाकर अलग हो जाते हैं। किन्तु 'महाभारत' के महाकान्तार में रास्ता खोज पाना बहुत कठिन है। स्थान-स्थान पर हिंस्र पशुओं, नदी-नालों, झाड़-झंखाड़ों का मार्गावरोध। इसमें रास्ता खोजने, निरन्तर चलते रहने, भटकने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। भटकने का अपना अलग सुख होता है। उसका अपना सुख है, अगर कुछ मिल जाये तो क्या कहना! अगर...
'महाभारत' के अनगिनत आयाम हैं। उन पर अनन्त काल तक लिखा जा सकता है। दुनिया में प्रतिपल, प्रतिक्षण जो महाभारत हो रहा है, वह हम देख रहे हैं, सुन रहे हैं। इस 'महाभारत' के अतिरिक्त हर व्यक्ति के मन में एक महाभारत होता रहता है। एक-दूसरे से कुछ मिलता-जुलता फिर भी भिन्न 'महाभारत' के टेक्स्ट को प्रत्येक पाठक अपने अपने ढंग से 'डी-कान्स्ट्रक्ट' करेगा और अलग-अलग परिणतियों पर पहुँचेगा। ('प्राक्कथन' से) तत्त्वान्वेषी पाठकों के लिए एक विशिष्ट कृति।