Mahakavi Galib Ki Shayari
महाकवि 'ग़ालिब' उर्दू के अन्तिम बड़े क्लासीकी कवि थे। उन्हें उर्दू का पहला बड़ा आधुनिक कवि भी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि 'ग़ालिब' के व्यक्तित्व और उनकी कविता में नई और पुरानी दुनिया के निशान एक साथ जमा हो गए थे। उर्दू के एक प्रसिद्ध आलोचक ने कहीं लिखा था कि मुग़लों ने भारतवर्ष को तीन बड़े तोहफ़े दिए-एक उर्दू भाषा, दूसरे ताजमहल और तीसरे दीवान-ए-ग़ालिब । यह तीनों चीजें एक महान सांस्कृतिक और सृजनात्मक परम्परा की भेंट कही जा सकती हैं।
'ग़ालिब' का जन्म 1797 ई. में आगरे में हुआ । लगभग तेरह वर्ष की आयु में वह दिल्ली चले आए और 1869 ई. में अपनी मृत्यु तक 'गालिब' दिल्ली ही में रहे । यह पूरा ज़माना भारतीय इतिहास में एक बहुत बड़े मानसिक और भावनात्मक संघर्ष का ज़माना था। एक तरफ़ मुग़ल राज्य की धीरे-धीरे टूटती और बिखरती हुई परम्परा दूसरी तरफ़ ईस्ट इंडिया कम्पनी, फिर उसके बाद अंग्रेज़ी साम्राज्य की पाली-पोसी एक नई वैचारिक परम्परा । दो संस्कृतियों के टकराव ने इस ज़माने में जिन परिस्थितियों को जन्म दिया उनमें नए और पुराने सामाजिक तत्त्व एक-दूसरे से टकरा भी रहे थे और एक-दूसरे में प्रवेश भी कर रहे थे । 'गालिब' की कविता किस तरह एक दो राहे पर खड़ी दिखाई देती है।
(इसी पुस्तक से)