Mahamari Raja Ka Aakhyan
महामारी राजा का आख्यान -
अगर ऐसे बच्चे नज़र आते जो उस वक़्त बीमार न हों पर माता-पिता ख़ुद में रोग के लक्षण देख रहे हों, वे उन्हें बाहर रख देते, ग्योपा ने बताया, कभी तो ऐसी किसी भी चीज़ पर जो तैरती हो और उन्हें भरसक अच्छी तरह लपेट-बाँध देते। नदी की धार में बहा देते। छोटी सी नाँद तक में, पीठ बल लिटाये गये, वे दक्षिण दिशा में बहते जाते, मानो बादलों पर तिर रहे हों।
“क्योंकि शायद” उसने कहा, अगले गाँव में लोग हों, जो बचे हों। या शायद उसके बाद वाले गाँव मे।
वह अभी भी राजा की ओर पीठ किये बैठा था और उसके सामने आग छोटी स्याह लपटों में नाच रही थी।
"शायद यही हुआ हो," उसने कहा। "हो सकता है एक-दो बचा लिए गये हों, मैं नहीं जानता। मैं तो उस पर विचार कर रहा हूँ जो मैंने यहाँ ऊपर आते समय तट के पास देखा था।"
-पुस्तक से