Main Tha Judge ka Ardali
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मुझे निंदर घुगियाणवी से मिलकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। उसकी छोटी-सी आयु है और लिखता बहुत रोचक है, काफ़ी कुछ लिख चुका है। चाहे वह कभी न्यायपालिका में 'छोटा मुलाजिम' रहा है, परन्तु न्यायपालिका से सम्बन्धित अपने दिलचस्प अनुभव और न्यायपालिका की विभिन्न समस्याओं पर लिखकर वह ‘बड़ा लेखक' बन गया है। मेरी शुभकामनाएँ और आशीष उसके साथ हैं।
—जस्टिस राजिन्दर सच्चर
(रिटा. चीफ़ जस्टिस, दिल्ली हाई कोर्ट)
★★★
निंदर भैया, बड़ा नाम कमाया है आपने और ज़बरदस्त रचना लिखी है। आपको नहीं पता कि आप क्या हैं! यह सब भगवान की ही देन होती है। उसके हुक्म के बिना एक पत्ता नहीं हिल सकता। मुझे याद है कि मैंने बचपन में एक बंगाली पुस्तक को बार-बार पढ़ा था- इतने अनजाने। शंकर की लिखी हुई है, इसका हिन्दी में अनुवाद भी मिलता है। लेखक एक वकील के मुंशी थे। बाद में वे खुद वकील बन गये । उस पुस्तक में वकीलों, जजों, मुंशियों, अर्दलियों और कोर्ट से जुड़े सभी लोगों के बारे में बहुत कुछ मिलता है। ऐसा ही आपकी इस रचना में भी है। युग-युग जिएँ मेरे भाई!
—जस्टिस जी. एस. सिंघवी
(रिटा. जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट)
ISBN
9789369449118
मुझे निंदर घुगियाणवी से मिलकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। उसकी छोटी-सी आयु है और लिखता बहुत रोचक है, काफ़ी कुछ लिख चुका है। चाहे वह कभी न्यायपालिका में 'छोटा मुलाजिम' रहा है, परन्तु न्यायपालिका से सम्बन्धित अपने दिलचस्प अनुभव और न्यायपालिका की विभिन्न समस्याओं पर लिखकर वह ‘बड़ा लेखक' बन गया है। मेरी शुभकामनाएँ और आशीष उसके साथ हैं।
—जस्टिस राजिन्दर सच्चर
(रिटा. चीफ़ जस्टिस, दिल्ली हाई कोर्ट)
★★★
निंदर भैया, बड़ा नाम कमाया है आपने और ज़बरदस्त रचना लिखी है। आपको नहीं पता कि आप क्या हैं! यह सब भगवान की ही देन होती है। उसके हुक्म के बिना एक पत्ता नहीं हिल सकता। मुझे याद है कि मैंने बचपन में एक बंगाली पुस्तक को बार-बार पढ़ा था- इतने अनजाने। शंकर की लिखी हुई है, इसका हिन्दी में अनुवाद भी मिलता है। लेखक एक वकील के मुंशी थे। बाद में वे खुद वकील बन गये । उस पुस्तक में वकीलों, जजों, मुंशियों, अर्दलियों और कोर्ट से जुड़े सभी लोगों के बारे में बहुत कुछ मिलता है। ऐसा ही आपकी इस रचना में भी है। युग-युग जिएँ मेरे भाई!
—जस्टिस जी. एस. सिंघवी
(रिटा. जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट)
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