Manto Ki Sadi

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मंटो की सदी - 
यह उर्दू के महान अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो का शताब्दी वर्ष है। मंटो इस उप-महाद्वीप के निराले कथाकार थे। इन सौ बरसों में मंटो जैसी शख़्सियत न अवतरित हुई और न शायद अगले सौ बरसों में हो। आज अगर मंटो होते तो 2011 में वह सौवें साल में प्रवेश कर जाते। मंटो उर्दू के कथाकार थे, मगर हिन्दी में उनकी मक़बूलियत कम नहीं थी। हिन्दी क्या, किसी भी भारतीय अथवा विदेशी भाषा के लिए मंटो एक जाना-पहचाना नाम है। उनके कथा-शिल्प की तुलना विश्व के श्रेष्ठतम कथाकारों से की जा सकती है।
अपने दौर में मंटो पर कृशन चन्दर, उपेन्द्रनाथ अश्क, इस्मत चुग़ताई ने बहुत आत्मीय संस्मरण लिखे थे। इस्मत आपा का संस्मरण प्रकाशित करने की हमारी बहुत इच्छा थी, मगर वह हमें प्राप्त नहीं हो पाया। कृशन चन्दर ने मंटो पर दो संस्मरण लिखे थे, एक उनके जीवन काल में और दूसरा उनके निधन के बाद इन दोनों संस्मरणों के लिए भी तलाश शुरू की। उर्दू के अनेक रचनाकारों से सम्पर्क साधा, मगर फिर निराशा ही हाथ लगी। कृशन चन्दर ने कहीं ठीक ही लिखा था कि मंटो एक ग़रीब सतायी हुई ज़ुबान का ग़रीब और सताया हुआ साहित्यकार था। उर्दू को एक सतायी हुई ज़ुबान तो कहा जा सकता है मगर उर्दू ज़ुबान को एक दौलतमन्द ज़ुबान का दर्जा हासिल है, जो लगातार गुरबत की तरफ़ बढ़ रही है। उर्दू में मंटो पर सामग्री खोजना मुश्क़िल काम है, मगर हिन्दी में मंटो पर सामग्री जुटाने में ज़्यादा मुश्क़िल नहीं आयी।
वैसे तो मंटो उर्दू के अफ़सानानिग़ार थे, मगर हिन्दी में भी कम लोकप्रिय न थे। आने वाली नस्लों ने मंटो को ख़ूब पढ़ा। मंटो विश्व के उन चन्द अफ़सानानिग़ारों में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने केवल कहानी विधा के बल पर अदब में इतना बड़ा मुक़ाम में हासिल किया। इस दृष्टि से वह चेखव, मोपासाँ, ओ. हेनरी की कतार में शामिल किये जा सकते हैं।
हमारी कोशिश रही है कि प्रस्तुत संचयन की मार्फ़त हमारे पाठक उर्दू की इस अजीम शख़्सियत सआदत हसन मंटो के व्यक्तित्व और कृतित्व से भली भाँति रू-ब-रू हो सकें।

ISBN
9789326350440
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