Media Samkalin Sanskritik Vimarsh
मीडिया समकालीन सांस्कृतिक विमर्श -
'मीडिया' सिर्फ़ माध्यम नहीं है, वह एक वातावरण, एक 'स्पेस' और एक 'विमर्श' है। उसकी सत्ता है मीडिया जनतन्त्र का चौथा ‘पैर' है जो कभी-कभी इतना ताक़तवर होता दिखता है कि बाकी तीन ‘पैरों' को विचलित करता दिखता है।
उदारीकरण के बीस बरस बाद मीडिया का कारपोरेटाइजेशन, उसका पूँजी निवेशगत भूमण्डलन उसे नये 'माइंड मैनेजर' की भूमिका प्रदान करता है।
मीडिया के हर पहलू, हर करवट पर हर रोज़ तीख़ी नज़र रखने वाले प्रख्यात लेखक सुधीश पचौरी अपनी बेबाक क़लम से मीडिया की नित्य 'वर्चुअल लीला', उसके प्रभाव और अन्तःक्रियाओं को मिलाकर मीडिया का जो 'पाठ' बनाते हैं, वह मीडिया अध्येताओं के लिए एक ज़रूरी 'टेक्स्ट' बन गया है।
यहाँ उनके पिछले दो-तीन वर्षों के चुनिन्दा लेख हैं जिनमें इन तीनेक सालों में मीडिया के स्वामित्व से लेकर उससे जुड़ी तमाम समस्याओं की समीक्षा करते हैं। वे मीडिया की बदलावकारी भूमिका को प्रथमतः और अन्ततः सामाजिक विकास की ज़रूरतों से तौलते हैं और मीडिया के दोषों को सोलते हैं।
लेखक के पाठक इन महत्त्वपूर्ण लेखों को एक जगह पढ़कर लाभान्वित होंगे।