Meera Ki Bhakti Evam Rajneeti
मीरां एवं उसके युग एवं मेवाड़ की आन्तरिक राजनीति में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह पुस्तक एक बेहतरीन सन्दर्भ ग्रन्थ है। मीरां की जो जीवनी दी गयी है वह न केवल प्रामाणिकता के निकट है वरन इतिहास दृष्टि से परिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण शोध निष्कर्षों का समन्वित परिणाम है। यह पुस्तक बताती है कि मीरां के लिए कृष्ण भक्ति एक साधन थी न कि साध्य । कृष्ण भक्ति का सहारा लेकर मीरां ने मध्यकालीन सामन्ती समाज में व्याप्त सती प्रथा जैसी तमाम सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया एवं स्त्री स्वतन्त्रता के पक्ष में विद्रोह का स्वर बुलन्द किया। यह पुस्तक ब्राह्मण कथाकारों एवं परवर्ती आलोचकों द्वारा निर्मित मीरां की उस पारम्परिक छवि को तोड़ती है जो उसे केवल प्रेम-दिवानी कवयित्री की परिधि में सीमित कर देना चाहते थे। निश्चय ही मीरांयुगीन समाज एवं तत्कालीन राजनीति को समग्र रूप से समझने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।