Meerabai
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"मीराबाई का जीवन लौकिक होते हुए भी अलौकिक था । मेरी गुरुमाँ इन्द्रादेवी जी के कारण मीरा के प्रति मेरा लगाव शुरू से था, यह लगाव तब और भी बढ़ गया, जब मुझे मीरा के चरित्र को अभिनीत करने का सुअवसर मिला ।
मीराबाई के जीवन एवं भक्ति साधना के सम्बन्ध में विद्वतापूर्ण लेखों का यह संकलन मीरा की प्रेम और भक्ति - साधना को समझने के लिये बहुत ही प्रासंगिक एवं उपयोगी है । मैं इस सार्थक पहल के लिये उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के प्रति साधुवाद ज्ञापित करती हूँ ।
- हेमा मालिनी
★★★
मीराबाई - हमारे मध्यकालीन भक्तकवियों का प्रामाणिक जीवनवृत्त तो उपलब्ध नहीं, लेकिन उनकी कविता पढ़ते समय कविता में उनका व्यक्तित्व बार-बार उभर आता है। वे अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं को लिये-दिये इष्ट को समर्पित होते हैं। अपने इष्ट की जो मूर्ति ये कवि अपनी वाणी द्वारा गढ़ते हैं, उसमें इनका व्यक्तित्व भी घुला- मिला होता है। मीरा ने अन्य महान् कवियों की तुलना में—कबीर, जायसी, सूर, तुलसी की तुलना में - कम लिखा है, किन्तु अपने विषय में उन्होंने पर्याप्त संकेत दिये हैं। केवल तुलसी ने ही अपने जीवन के विषय में मीरा से अधिक लिखा होगा ।मीरा की कविता में लोकलाज, कुल की मर्यादा को तोड़ने या लाँघने की बात बार-बार कही गयी है । यह अकारण नहीं । इसके सामाजिक कारण हैं। मीरा अपने इष्ट को समर्पित तो होती हैं लेकिन इस समर्पित होने की प्रक्रिया में जो विघ्न-बाधा आती है, उसका संकेत भी वह दे देती हैं। यह भी देखने की चीज है कि तुलसी के समान मीरा की कविता में भी 'दुर्जन', 'खल' आते हैं। विषमता का बोध मीरा के यहाँ प्रकट है। कबीर, तुलसी ने अपने समकालीन किसी 'खल' का नाम लेकर उल्लेख नहीं किया। मीरा ने 'राणा' का नाम लिया है। मीरा की कविता अमृत-विष साथ-साथ अक्सर आते हैं। कहा गया है कि उन्हें विष दिया गया था, उन्होंने पी लिया तो अमृत हो गया। पता नहीं यह सत्य है या असत्य, लेकिन इसका प्रतीकार्थ जरूर है। विषपान मीरा का-मध्यकालीन नारी का-स्वाधीनता के लिए संघर्ष है और अमृत उस संघर्ष से प्राप्त तोष है जो भावसत्य है। मीरा का संघर्ष जागतिक, वास्तविक है, अमृत उनके हृदय या भावजगत् में ही रहता है ।इस तरह मीरा की कविता में भक्तिभावना की अभिव्यक्ति हुई है, लेकिन वे मध्यकालीन सामन्ती व्यवस्था की पीड़ित नारी, भक्त कवयित्री हैं। इसलिए उनके पीड़ित नारीत्व को भूलकर उनकी कविता को हृदयंगम नहीं किया जा सकता ।- इसी पुस्तक से"
ISBN
9789362873798