Mein Bashir Hoon

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मैं 'बशीर' हूँ... बशीर बद्र की ताज़ा ग़ज़लें - 
हर बड़े शायर को कड़ी आज़माइशों से गुज़रना होता है। मीर को अपनी अजमत के इज़हार के लिए अजगर नामा लिखने की ज़रूरत पड़ी ग़ालिब ने क्या क्या मारका आराइयाँ की फ़ैज़ जिन्हें उनकी ज़िन्दगी में मकबुलिअल और इज्जत मिल गयी उन्हें भी आसानी से यह रुतवा नहीं मिला था गजिशता तीस वरस में बशीर बद्र ने भी ये सख्तियाँ झेली हैं। 'इकाई' से लेकर 'आमद' तक इन बड़ी-बड़ी आज़माइशों से वो गुज़रे हैं। उनकी ग़ज़लों की पहली किताब 'इकाई' ने हमारे अदब में तहलका मचा दिया था। एक अजीब शान और धूम से बशीर बद्र ग़ज़ल की दुनिया में आये लेकिन इस पर भी बड़े सर्दो गर्म मौसम गुज़रे, तब वो यहाँ तक पहुँचे हैं।
-प्रो. गोपी चन्द्र नारंग

बशीर बद्र की ग़ज़ल पढ़ते हुए मैंने हर लफ़्ज का मुनफ़रद जायका महसूस किया है। खुरदुरे से खुरदुरे और ग़ज़ल बाहर अल्फ़ाज भी उनके अशआर में नर्म, मीठे और सच्चे लगते हैं।
-कुमार पाशी

ग़ालिब के बाद बशीर बद्र के अशआर में जो ताज़गी, शगुफ़्तगी, नदरत और बलाग़त है वो शायद उर्दू अदब के पूरे एहदेमाजी में कहीं नहीं।
-जगतार

ISBN
9789350002469
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