Meri Katha Yatra
मेरी कथा-यात्रा -
विद्यासागर नौटियाल हिन्दी के उन वरिष्ठ कथाकारों में से हैं जो पूरे मन से यह मानते हैं कि उन्हें समाज का बकाया चुकता करना है। वह भी इस तरह की रचना और पाठक के बीच रचनाकार की उपस्थिति कम से कम हो। रचना पाठक से व पाठक रचना से अपना सम्बन्ध स्वयं बनाये। ज़िन्दगी के 74 पन्नों से यह 54 कहानियाँ इस बात की गवाह हैं कि नौटियाल जी का कथाकार सौद्देश्य लेखन में यकीन रखता है। ये लेखक की अब तक उपलब्ध हो सकी समग्र कहानियों में से चयनित का संकलन है।
लेखक की पहली कहानी 'मूक बलिदान' 1951 में प्रकाशित हुई थी। 1953 तक कथाकार के नाम में 'दुर्वासा' भी जुड़ा रहा, लेकिन 'भैंस का कट्या' के प्रकाशन के साथ 1953 में यह संज्ञा अलग हो गयी। कम लोग जानते होंगे कि नौटियाल जी ने बनारस प्रवास से पूर्व देहरादून में भी कहानियाँ लिखी थीं। हाँ, यह सच है कि ख़ुद लेखक अपने बनारस प्रवास को लेखकीय जीवन के लिए एक उपलब्धि मानते हैं।
उनके कथाकार मन को पहाड़ की स्त्री ने अधिक आकर्षित किया है तो इसके अपने तर्क भी हैं। अतीत के अकिंचनों को भी इस कथाकार ने कथा का विषय बनाया है तो इसलिए कि जन-इतिहास की धारा अवरुद्ध न हो। उनकी कथायात्रा एक तरह से रचनाकार के आत्मगौरव और आत्मविश्वास की कथा है। उसमें समय और समाज की विसंगतियाँ धरती की गन्ध के साथ उभर कर आयी हैं।
कहना ज़रूरी है कि तीस बरसों के अन्तराल के बाद नौटियाल जी 'फट जा पंचधार' के ज़रिये साहित्य की दुनिया में ऐसे लौटे कि उनकी लेखनी फिर से गतिवान हो उठी। लोक से प्रेरणा लेकर इरादतन लोक के लिए लेखन करने वाले इस प्रतिबद्ध कथाकार की समग्र कहानियों का हिन्दी-जगत को भरपूर स्वागत करना चाहिए।
-महेश दर्पण