Morche
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"तनु घिरी हुई है कितने ही मोरचों से । लगातार लड़ना है उसे । कभी माँ कवच बनकर आती है उसकी रक्षा को, कभी भाई तो कभी बहन । लेकिन लड़ाई उसकी अपनी है, इसी से उसी को जूझना है पुरुष समाज के अनाचारों से । लड़ाई में हथियार चाहे वह खुद को बनाये, या अपनी सन्तान को, ऊर्जा तो उसे अपने भीतर ही पैदा करनी है जो उसे लड़ने का मादा दे सके ।
रिश्ते, क़रीबी लोग सहायक बन सकते हैं पर एक मार खायी औरत को जीवन खुद ही जीना होता है, पत्नीत्व की अपेक्षाओं और पेशे की चुनौतियों दोनों का सामना करना होता है और अन्ततः अपने लिए एक सुरक्षित स्थान और सही दिशा चुननी होती है।
एक हिंसक पति के चक्कर में फँसी तनु न तो रिश्ते के बाहर निकल पाती है, न ही उसके बीच रहने के क़ाबिल हो पाती है। विदेशी भूमि के अजनबी परिवेश में गिरती, पड़ती, ठोकरें खाती और सही रास्ते तलाशती तनु की बेजोड़ कहानी प्रस्तुत है सुषम बेदी के उपन्यास मोरचे में।
मोरचे अपने कथा-आस्वाद में उल्लेखनीय कृति तो है ही, सँजोने योग्य भी है।
܀܀܀
ज़िन्दगी एक अनथक संघर्ष ही है। आदमी को अपनी जगह पर टिके रहने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता है। ज़रूरी नहीं कि यह संघर्ष सिर्फ़ परायों से हो । तनु के जीवन-संघर्ष में तो उसका पति ही प्रतिपक्ष बनकर उसके सामने खड़ा था। पति-पत्नी के आत्मीय रिश्ते को भूलकर उसने उसे भोग्या मात्र समझा । लेकिन स्वाभिमान खोकर जीने से इनकार करने वाली तनु ने अपने पति की पुरुष-सत्ता को न सिर्फ़ अस्वीकार कर दिया, बल्कि हरेक क़दम पर उसकी निरंकुशता और हिंसा के ख़िलाफ़ मोरचे खड़े किये।
जीवन के बिगड़ते-बनते समीकरणों के बीच तनु के संघर्षशील जीवन-यात्रा की अविस्मणीय गाथा है-मोरचे।"
ISBN
9788181435613