Mrigtrishna
अशिक्षित जहरुल के अकाट्य तर्क के सामने
मास्टर चुप हो गये थे । मानवाधिकार, शिक्षा का
अधिकार, बाल श्रम पर पाबन्दी आदि बातों से
इन लोगों का दूर-दूर तक रिश्ता नहीं है। जीवन
नदी की तेज धार में किसी तरह जीवित रहने
वाले जहरुल जैसों का व्यावहारिक ज्ञान सब
प्रकार के अधिकार और क्रानून के ऊपर
अवस्थान करता है। समस्याओं को सतही स्तर
पर देखकर नीति बनाने से समाधान नहीं
मिलता । तह तक जाकर मूल में ही उनका
उपचार करना होता है। पर नेताओं को
राजनीतिक जीवन में टिके रहने के लिए
समस्याओं को उसी प्रकार जिन्दा रखना जरूरी
होता है, जिस प्रकार बीमा से लाभ उठाने के लिए
नियमित रूप से किस्त देते रहना जरूरी होता है ।
मास्टर ने अपने समाज की सभी ध्यान-धारणाओं
को चुनौती देकर बेटी अफ़रीदा पड़ोस के गाँव के
सरकारी स्कूल में दाख़िल करा दी थी । अफ़रीदा
इस गाँव की स्कूल जाने वाली पहली लड़की थी ।
इस घटना के बाद मास्टर की अच्छी खिल््ली उड़ी
थी... मास्टर का दिमाग छ़ाराब हो
गया कि बेटी को पढ़ाने के लिए दूसरे गाँव में
भेज रहा है। औरत जात है, घर में रहे,
चूल्हा-पानी का काम सीखे और कहीं किसी के
माथे डाल दे, बात ख़त्म । क्या जाने कहाँ क्या
गुल खिलायेगी। गाँव की इज्जत मिट्टी में
मिलाकर रहेगी। लड़की कब हाथ से फिसल
जायेगी बाप को पता ही नहीं चलेगा । उस दिन
बड़ा मज़ा आयेगा ।
मास्टर का स्पष्ट विचार था कि उनकी बेटी भी
समय के साथ क़दम मिलाकर आगे बढ़ेगी, वह
गाँव की दूसरी लड़कियों से अलग पहचान
बनायेगी । मास्टर के इस निर्णय ने गाँव वालों के
अहमू को चोट पहुँचाई थी। तभी से सबकी
निगाहें अफ़रीदा पर टिकी थीं । और अफ़रीदा ने
भी अपने परिवार के संस्कार से एक आदर्श
लड़की के रूप में ख़ुद को गढ़ा था । मास्टर अब
तक सिद्ध करते आये हैं कि बेटी को लेकर किया
गया उनका निर्णय बिल्कुल सही था । पर आज वे
अधीर हैं । यदि बेटी का रिजल्ट अच्छा नहीं हुआ
तो इस गाँव में उन लोगों का जीना हराम हो
जायेगा ।
-पुस्तक अंश