Nadi, Main Tumhen Rukne Nahin Dunga
" किसी नदी के किनारे बैठना आत्मा की सबसे बड़ी यात्रा है!'
जो भी डॉ. सुधीर आज़ाद से परिचित है वह यह जानता है कि वो एक दरिया जैसे शख़्स हैं। बहोत बेतरतीब और बहोत तेज़ रफ़्तार । उनकी फ़िल्म्स के सब्जेक्ट उनकी तबीयत के गवाह हैं तो उनकी शायरी उनकी तासीर का चेहरा है । लेकिन उनके भीतर इतना संजीदा और गहरा कवि भी है यह कभी ज़ाहिर नहीं था । इस किताब की ये कुछ पंक्तियाँ ही डॉ. सुधीर आज़ाद के भीतर के एक बेहतरीन कवि से रूबरू कराने के लिए
बहुत हैं-
“संसार का सबसे सुरीला संगीत
वो चट्टानें सुनती हैं, जो नदियों के पास होती हैं !"
“दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत रास्ते वे हैं जिन रास्तों से होकर नदी गुज़रती है ! एक नदी मेरे भीतर से भी गुज़रती है । वह तुम हो !"
" साँप की तरह चलने वाली नदी
गाय की तरह होती है
और गाय की तरह दिखने वाला मनुष्य
साँप की तरह होता है ।”
“भीगना एक क्रिया है
जो पानी के बिन सम्भव नहीं ।
पूरी सूख जाने के बाद भी नदी में पानी रहता है
इसलिए किसी सूखी नदी से
गुज़रते समय आत्मा भीग जाती है।"
“नदी, सिर्फ़ उतनी ही शेष रहेगी जितना शेष रहेगा
में
एक मनुष्य में मनुष्य !”
"नदी देवी है
और देवी के मानवीय अधिकार नहीं होते । नदी माँ है
और माँ का वसीयत में नाम नहीं होता ।"
इस किताब में मौजूद कविताओं का बहाव बहुत तेज़ है और कमाल यह है कि हम इसमें बह जाना भी चाहते हैं। एक मुकम्मल सफ़र सरीखी यह दो पंक्तियाँ देखिए-
"किसी नदी के किनारे पर चलना / आत्मा का सबसे बड़ा ठहराव है !"
-परी जोशी
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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