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Nagrikta Ka Stri Paksh

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Nagrikta Ka Stri Paksh
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ऐतिहासिक रूप से नागरिकता की निर्मिति बहिष्करणों की एक श्रृंखला से हुई, जिसमें लोगों के एक बड़े तबके को नागरिकता के लिए अयोग्य माना गया। विभिन्न ऐतिहासिक दौरों में नागरिक बनने' के रूप में समान सदस्यता का क्रमिक विस्तार हुआ, जिससे नये लोग और समूह नागरिकता के दायरे में सम्मिलित हुए। हालाँकि समानता का वायदा जाति के पदसोपानों, जेण्डर के विभेदों और धार्मिक विभाजनों की बहिष्करणीय रूपरेखा पर एक तरह से परदा डाल देता है। किन्तु हक़ीक़त यह है कि इन्हीं पदसोपानों, विभेदों और विभाजनो के आधार पर नागरिकता का वास्तविक अनुभव सामने आता है। 

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Nagrikta Ka Stri Paksh
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Vani Prakashan
Author: Anupam Roy

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