Nari Ke Roop
नारी के रूप -
नारी ने हर युग में ज़िन्दगी, परिवार और समाज ही नहीं आर्थिक-राजनीतिक क्षेत्र के केन्द्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है। साहित्य, कला और संस्कृति तो उसके बिना प्राणहीन है। दुनिया की इस आधी आबादी से ही जीवन, जीवन है। परन्तु मर्द ने उसे इन्सान मानने की बजाय इज़्ज़त, सम्पत्ति और लूट का माल अधिक माना है। मर्द अपने ताक़तवर दुश्मन से जब बदला नहीं ले पाता तो उसकी कायरता का शिकार औरत होती है। गुज़री सदियों का इतिहास इसका गवाह है। इक्कीसवीं ही नहीं आनेवाली सारी सदियों में भी उसे मर्द के अहं और वहशीपने को झेलना पड़ेगा। भावी सदियाँ भी उसे दुहरायेंगी।
नारी मन की संवेदना, विचित्रता, और भावुकता के बीच अंगद पाँव न जमा पाने की दुर्बलता और कुछ के विद्रोही तेवर ही कहानी की आधारशिला बनते हैं। माँ, बहन, बेटी, बहू, प्रेमिका और गर्लफ्रेण्ड के रूप में वह पुरुष से तो जुड़ी ही है लेकिन इसके अलावा भी उसके पास बहुत कुछ होता है। वह देह मात्र ही नहीं है। देह के परे भी उसके पास बहुत कुछ है।
संवेदना के अदृश्य और रेशम से भी बारीक एवं मज़बूत तार से पुरुष से जुड़ी नारी की संवेदनशीलता के क्षतिग्रस्त होने पर ही कहानी जन्म लेती है। पुरुष द्वारा उसके आसपास बुनी ढेर सारे झूठों की चादर को उसने भी जाने-अनजाने ओढ़ रखा है। जिसने भी इस चादर को फाड़ डाला उसे पुरुष ने माफ़ नहीं किया। नारी ने भी अपने ही कुल को नुक़सान पहुँचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
कहने को बहुत कुछ है परन्तु जो थोड़ा-बहुत कहा है संग्रह की कहानियाँ नारी के उस कुछ और संवेदना के क्षतिग्रस्त, नारों के तेवरों का दस्तावेज़ हैं। औरत सिर्फ़ मादा तन ही नहीं है। उसने मर्द समाज ज़िन्दगी को बहुत कुछ दिया है और आगे भी देती ही रहेगी। इन कहानियों को पढ़कर और संग्रह में आकलित नारियों के विभिन्न रूपों को देखने के बाद ही आप समझ सकेंगे। नारी के प्रति नज़रिया बदलने में आपको झकझोरने में ही इनकी सफलता निहित है।