Naya Kanoon (Manto Ab Tak-14)
मण्टो की कहानियों के सम्बन्ध में एक और बात, जो बार-बार उभर कर सामने आती है, वह है समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों, उनके परस्पर टकराव का सूक्ष्म चित्रण अपनी सारी समाजपरकता और सोद्देश्यता के बावजूद मण्टो 'व्यक्ति' का सबसे बड़ा हिमायती है। जहाँ वह व्यक्ति के रूप में आदमी द्वारा समाज पर किये गये हस्तक्षेपों के प्रति ग़ाफ़िल नहीं है, वहीं वह उन असहज दबावों के भी खिलाफ़ है, जो समाज की ओर से व्यक्ति को सहने पड़ते हैं। समाज द्वारा व्यक्ति की आजादी के मूल अधिकारों के हनन को मण्टो एक जुर्म समझता है, उसी तरह जैसे व्यक्ति द्वारा जनता के शोषण को ।
'नया क़ानून' में मण्टो ने एक अनपढ़ ताँगेवाले का अद्भुत हास्य-व्यंग्य और दर्द-भरा चित्रण किया है। जनता के एक ऐसे प्रतिनिधि का जो समझता है कि क़ानून के बदल जाने से स्थितियाँ भी बदल जाएँगी। मंगू कोचवान को देख कर उन हज़ारों-लाखों 'सुराजियों' की याद हो आती है जो यह समझते थे कि आज़ादी के बाद सारी स्थितियाँ आप से आप बदल जाएँगी। लेकिन सुराज आया और स्थितियाँ वैसी की वैसी रहीं बल्कि कहें तो और अधिक ख़राब ही हुईं- जब सारे देश में भ्रष्टाचार खुले तौर पर फैल गया और एक घिनौनी साज़िश के परिणामस्वरूप देश के टुकड़े कर दिये गये। साम्प्रदायिकता, ग़रीबी, अशिक्षा और पिछड़ापन वैसे का वैसा रहा। नेताओं ने गद्दियाँ सँभाल लीं और जनतन्त्र में से जनता धीरे-धीरे गायब होती चली गयी। एक तन्त्र भर रह गया जिसमें चुनावों पर इतना रुपया खर्च कर दिया जाता है जितना कि एक छोटे-मोटे देश का वार्षिक बजट होता है।
तीखे व्यंग से लिखी गयी यह कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी अपनी लिखे जाने के समय थी।