Nibandhakar Agyeya
निबंधकार अज्ञेय -
"छायावादोत्तर हिन्दी साहित्य में अज्ञेय का सर्जनात्मक प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व अपनी अलग पहचान रखता है। हिन्दी की नयी रचनाशीलता को मंच देने और सामने लाने में अज्ञेय की भूमिका असंदिग्ध है। जिस प्रकार उन्होंने नयी कविता को दिशा और गति दी उसी प्रकार हिन्दी गद्य की विविध विधाओं को भी समृद्ध किया।
अज्ञेय एक चिन्तक रचनाकार थे। अपनी रचना-यात्रा में वे साहित्य और जीवन के प्रश्नों पर बड़ी गहराई से सोचते-विचारते रहे हैं। उनके चिन्तन का दायरा काफ़ी व्यापक है। ईश्वर, काल, धर्म, नैतिकता, स्वाधीनता, मूल्य, परम्परा, भारतीयता, यथार्थ, संस्कृति, भाषा आदि अनेक विषयों पर उनका गम्भीर चिन्तन उनके गद्य में पाया जा सकता है। उनके ये मौलिक विचार सबसे ज़्यादा उनके निबन्धों में व्यक्त हुए हैं।
प्रभाकर मिश्र की प्रस्तुत आलोचना पुस्तक अज्ञेय के निबन्ध-संसार का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने वाली महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। प्रभाकर जी ने अज्ञेय की निबन्ध-यात्रा और उनकी चिन्तन-मुद्रा को बड़ी सहानुभूति के साथ परखने की चेष्टा की है। निबन्धकार अज्ञेय की बुनियादी चिन्ताओं को यह पुस्तक बड़ी सहजता से उद्घाटित करती है।" -विश्वनाथ तिवारी