Ninyaanve
निन्यानवे -
'निन्यानवे' राष्ट्रीय विघटन का एक रूपक है। यह स्वातन्त्र्योत्तर समाज की क्रमिक टूटन को एक परिवार की कहानी के माध्यम से रूपायित करता है। इसका काल 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस तक है। परिवार का एक पुरखा 1857 के संग्राम में अपने पिता और परिवार को खोकर झाँसी के बाहर जंगल में घास खाता है और अगली सदी के अन्तिम दशक में उसी परिवार का एक पुत्र अपने शहर में नेता और ठेकेदार बनता है और अपने पुश्तैनी घर को बेचने की योजना बनाता है ताकि उसके निन्यानवे लाख एक करोड़ हो जायें उसे विधवा माँ की चिन्ता नहीं है।
यह आत्म-केन्द्रित मध्यवर्गीय उपभोक्तावाद पर भी एक तीख़ी टिप्पणी है।
इस सन्तान का नाम हरि है जिसका नाम उसके पिता उसके चाचा के नाम पर रखते हैं जो चन्द्रशेखर आज़ाद के क्रान्तिकारी दल में थे और एक बम-परीक्षण में मारे गये थे। हरि के पिता रामदयाल राष्ट्रीय आन्दोलन में कई बार जेल गये थे। आज़ादी के बाद शिक्षक रामदयाल पहले समाजवादी सपना देखते हैं, फिर अपने परिवार और समाज का टूटना। हरि का बड़ा भाई बलराम है जो एक मुस्लिम लड़की से शादी करता है और लखनऊ में रहते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस की विडम्बनाएँ झेलता है।
रामदयाल अपने बेटे हरि में जो क्रान्तिकारी भाई का सपना देखते हैं, उसकी तामीर 'निन्यानवे' की दहशत में होती है जिससे बाबरी विध्वंस की जाने की कथा जुड़ी है।
यह उपन्यास इस सदी में हमारी स्वातन्त्र्योत्तर त्रासदी का आभ्यन्तरीकरण है।
हिन्दी कथा-परिदृश्य में अपनी छोटी कहानियों की गहरी काव्यात्मकता और सूक्ष्म रचना-दृष्टि के लिए विख्यात लेखक की कथा-भाषा इस उपन्यास में अपने चरम विकास पर है। यह बहु-आयामी भाषा है, जो एक साथ कई स्तरों पर चलती है और मानवीय नियति से उसकी सम्पूर्णता में साक्षात करती है।