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‘सस्वर सोचना है पतनशीलता को दर्ज करना। औरत जब अपने नज़रियात से दुनिया को, दुनिया के स्पेसिज़ को, रिश्तों को, रवायात को, क़ायदा-ओ-क़ानून को देखती है तो दुनिया उसे वैसी नहीं दिखाई दे सकती न जैसा कि जमात का वहम है कि उसे दिखती होगी। जमे-जमाये ढाँचे चाहे वे शादी के हों या कामकाजी दुनिया के; सबकी तह में हम औरतों के अकथ अफ़साने हालात-ए-हाइबरनेशन में मौजूद होते हैं। उन्हीं तहों में करीने से लिपटे सपनों, अनकही असहजताओं, नाक़ाबिलेग़ौर हमारी कुव्वतों, बुझाये गये हमारे यक़ीनों को सतह के ऊपर आने को उकसाने का तेवर है पतनशील होना। कहन के हुनर से काम लेते हुए दुनिया के हरेक ढाँचे की बदसूरती के इलाज की पहल की पहली पुरज़ोर करवट है ये तेवर।’ ‘पतनशील स्त्री वीनस ग्रह की अनसुलझी गुत्थी के बजाय सहज और मानवी के रूप में देखे जाने का ख़ालिस ईमानदार दावा पेश करने का फ़न रखती है। तहज़ीब के पोतड़े धोने-सुखाने-तहाने के फ़न तराशने में जिनका लगता नहीं है जी। देवी-दानवी के दंगल के दरमियाँ जो आपसे हँसाई जाती नहीं। मज़हबों, महकमों, मन्नतों, मिन्नतों की म्यान में जिनकी चमक आपसे छिपाई जाती नहीं। जो अपनी चाल में चुस्त, चलन में मस्त, चुनाव में दुरुस्त हैं। बिन्दास और मुखर हैं। खुशमिज़ाज और ताबदार हैं। ख़ुशदिल तर्कशीलता जिनका यू एस पी है। काम दाम नाम तीनों जिनके लिए सत्य है।’

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