Paar Pare
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"पार परे -
उर्दू के बहुचर्चित कथाकार जोगिन्दर पाल के इस उपन्यास में आम आदमी की उस त्रासदी को अभिव्यक्त किया गया है जिसके लिए वह उत्तरदायी नहीं होता मगर जिसे औरों के चलते, परिस्थितियोंवश भुगतना पड़ता है। इस उपन्यास में काले पानी की सज़ा काटकर बाकी जीवन उसी द्वीप में बिता देनेवाले कई महत्वपूर्ण पात्रों की जीवन-कथाएँ है, जो अतीत की तकलीफ़देह ज़िन्दगी के बावजूद अपनी सोच में प्रगतिशील, उत्साही और दूसरों के प्रति हमदर्द नज़र आते हैं।
बाबा लालू और गौराँ इस उपन्यास के प्रमुख पात्र हैं जो कालापानी में मानवीयता की मिसाल क़ायम करते हैं। बाबा लालू का जीवन धार्मिक समरसता का उदाहरण है। मगर दुर्भाग्य से धर्मान्धता का ज़हर उस निर्वासित द्वीप तक भी पहुँच जाता है और बाबा लालू का परिवार उसकी चपेट में आ जाता है। बाबा लालू के निरपराध बेटे को दण्डस्वरूप कालापानी की सज़ा भुगतनी पड़ती है। नियति की विडम्बना देखिए कि काले पानी की एक सजा बाबा लालू ने भारत से अण्डमान आकर भुगती, जबकि दूसरी सज़ा उसके बेटे को अण्डमान से बम्बई आकर भुगतनी पड़ती है; और ऐसा समाज के कुछ फ़ितूरी लोगों के कारण होता है। आख़िर दूसरों की नादानी से व्यक्ति के जीवन में कब तक काले पानी का इतिहास रचा जाता रहेगा? मनुष्यद्रोहिता और धर्मान्धता का जो आतंकवाद जीवन-मूल्यों को नष्ट करने पर उतारू है, उसे इस उपन्यास में गम्भीरता से रेखांकित किया गया है। उपन्यास अपने काल को लांघ कर आज के ख़तरों को रेखांकित करता है और उसे प्रासंगिक बनाता है।
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ISBN
8126313358