Publisher:
Vani Prakashan

Paki Jeth Ka Gulmohar

In stock
Only %1 left
SKU
Paki Jeth Ka Gulmohar
Rating:
0%
As low as ₹237.50 Regular Price ₹250.00
Save 5%

पकी जेठ का गुलमोहर कथाकार भगवानदास मोरवाल की स्मृतियों का अतीत राग या फिर महज उनकी दास्तान भर नहीं है, बल्कि यह बदलते आधुनिक ग्रामीण-शहरी समाज के बहाने एक लेखक के क्रमिक विकास के साथ-साथ, एक समाजशास्त्रीय और मानवशास्त्रीय आख्यान भी है। यह स्मृति-कथा पढ़ने में भले ही उत्तर भारत के तेज़ी से बदलते और विकसित होते बहुजातीय ग्रामीण-शहरी सभ्यता का समाजशास्त्रीय अध्ययन लगे, परन्तु इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यही हमारे समूचे आधुनिक भारतीय समाज का प्रतिनिधि सच है। अपने विलक्षण खुरदरे लोक अनुभवों को लेखक ने जिस रोचक, आत्म-व्यंग्य लहजे और पैनेपन के साथ प्रस्तुत किया है, उसने संस्मरण-विधा को एक नया सौन्दर्य और संस्कार प्रदान किया है। पकी जेठ का गुलमोहर आत्म-श्लाघा और आत्म-प्रवंचनाओं से भरी ठस आत्मकथाओं के विपरीत, स्मृति-कथा के रूप में ऐसा बहुस्तरीय आख्यान है जिसमें जीवन-जगत के अनेक बहुरंगी जीवन्त रेखाचित्र नज़र आयेंगे। यह कृति स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, समाज, परिवार, समुदाय, धर्म के अलावा साहित्य जगत की उन अनदेखी परतों को खोलती है, जो गाहे-बगाहे और जाने-अनजाने हमारी रचनात्मक चेतना से कहीं छिटक जाते हैं।

भगवानदास मोरवाल लेखक के साथ-साथ एक सफल क़िस्सागो हैं। इसीलिए भाषा के दुहरे-तिहरे रूप, रंगीन क़िस्सागोई, मार्मिक अर्थवक्रता की छटा इनकी पूर्व की रचनाओं की भाँति इस स्मृति-कथा में भी भरपूर देखने को मिलती है। इसके अनेक अविस्मरणीय पात्रों का एक तरह से लेखक ने पुनः सृजन ही नहीं किया बल्कि अपने समाज और परिवेश को सांस्कृतिक रूप से पल्लवित और पुष्पित करने वाली कुम्हार, मेव, खटीक, फ़कीर, चमार, भंगी जैसी हाशिये वाली जातियों और सन्नार्थी, बामन, बनिया सहित अनेक सवर्ण जातियों के उन सामाजिक रिश्तों के विरोधाभासों-अन्तर्विरोधों के साथ उनके दैनिक हास-परिहास, सुख-दुःख, छुआछूत, मान-अभिमान, जय-पराजय को इतनी सूक्ष्मता व निर्वैयक्तिकता के साथ प्रस्तुत किया, जिसे पढ़ कर लगेगा मानो हम मानव-जीवन के किसी महाकाव्य से गुजर रहे हैं। एक तरह से पकी जेठ का गुलमोहर जातिगत और सामाजिक खरोंचों की एक आहत गाथा भी है। कुलीन और आभिजात्य विरुदावलियों से लबरेज़ आत्मकथाओं के बरअक्स पकी जेठ का गुलमोहर अपनी गज़ब की क़िस्सागोई, अविस्मरणीय रेखाचित्रों, कहन, संस्मरणों से भरा लेखक और उसके समाज का आईना है। एक ऐसा आईना जिसमें बहुजातीय भारतीय समुदाय के कहीं हँसते-मुस्कराते चटख, तो कहीं बदरंग चित्र नज़र आयेंगे। ऐसे चित्र जो पाठक की बौद्धिक संवेदना को झकझोरे बिना नहीं रहेंगे। इस स्मृति-कथा का प्रमुख आकर्षण है इसकी तीखी, शोख, तिलमिलाई बल्कि एक हद तक वह चोट खाई भाषा, और इसका वह खिलन्दड़ अन्दाज़, जो पाठक की अँगुली पकड़ अन्त तक उसे अपने साथ चलने के लिए बाध्य करती है।

ISBN
Paki Jeth Ka Gulmohar
Publisher:
Vani Prakashan

More Information

More Information
Publication Vani Prakashan

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Paki Jeth Ka Gulmohar
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/