Pani Ke Nishan
पानी के निशान -
कहानी का उद्देश्य उन मानवीय मूल्यों को उभारकर प्रदर्शित करना है जो कमोबेश हर इन्सान के अन्दर विद्यमान होते है परन्तु उनका प्रदर्शन हर कोई नहीं कर पाता। मानव जीवन के लिए नितान्त आवश्यक उन मूल्यों के लिए भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है। उन मानवीय मूल्यों की सुरक्षा के लिए जिस साहस, त्याग और धैर्य की आवश्यकता होती है वह विरले लोग ही प्रदर्शित कर पाते हैं, इसलिए वह नायक बन जाते हैं। उनके आदर्शों के प्रतिमान समाज को दिशा देने में सहायक होते हैं। अपनी जान जोख़िम में डालकर दूसरों की मदद करना एक महान आदर्श है, इसलिए जो इस आदर्श के लिए कुर्बान हो जाता है वह बाकी लोगों के लिए प्रेरणा बन जाता है। मानवीय मूल्यों में ह्रास की ओर उन्मुख समाज के लिए तो ऐसी घटनाएँ और भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। कहानी इन घटनाओं एवं व्यक्तियों को अपना विषय बनाकर दिग्भ्रमित समाज को दिशा देती है। मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए ख़तरों की परवाह किये बग़ैर किया जाने वाला कार्य मानवता के ग्राफ़ को ऊपर उठाने के साथ-साथ अनुकरणीय एवं प्रेरणादायक भी है। इन्हीं मानव मूल्यों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए हर पीढ़ी अपने काल की साहित्यिक विधाओं द्वारा मानवीय संवेदनाओं के तार हिलाकर उन्हें निष्क्रिय नहीं होने देती। वस्तुतः मानवीय संवेदनाओं द्वारा संरक्षित नैतिकता का पानी उसकी पहचान और अस्तित्व को सुरक्षित रखने में सहायक होता है तभी तो रहीम ने लिखा था "पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून" परन्तु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इन्सान के अन्दर मानवता के पानी के सूखने की प्रबल सम्भावनाएँ हैं। इसीलिए संवेदनात्मक जल की एक-एक बूँद के संरक्षण की आवश्यकता है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण -
जीवन के इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं को देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप अर्थ प्रदान करने का कार्य भी आख़िर कहानी ही करने लगी। कल्पना मिश्रित यथार्थ पर आधारित कथानक बदलते समय में अपरिवर्तित सिद्धान्तों के समक्ष प्रश्नचिह्न लगा देता है और फिर अपने काल की चेतना से समाधान माँगने लगता है। काल चेतना कहानियों के माध्यम से समाधान प्रस्तुत करने लगती है और इससे चिन्तन की धारा को गति मिल जाती है पीढ़ियों के अन्तराल के बावजूद भी उनमें दरार नहीं पड़ने पाती।