Pani Par Patkatha
पानी पर पटकथा -
'पानी पर पटकथा' में संस्कृतनिष्ठ भाव-बोध और पूर्वी उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय भदेसपन का सर्जनात्मक संश्लेष है। यह क्षमता विचारणीय है। जैसे विषयवस्तु की व्याप्ति में मिथक जाति, देश-परदेश, धर्म, राजनीति, लोकजीवन विचारधारा सब मिलकर पाठ को निर्मित करते हैं। वैसे ही रूपगत संश्लेष में संस्कृत, अवधी उई, देहातीपन, मुहावरे, मिथकीयता, बिलन्दड़ीपना, ध्वनि-प्रवाह, घुले-मिले हैं। वस्तु और रूप का यह साहित्य इस कृति के औचित्य बन्ध का रहस्य है।
यह कार्य दुस्साध्य है। तुलसीदास बाबा ने संस्कृत, अवधी, ब्रजी, फ़ारसी, देशज का ऐसा घोल तैयार किया कि सब एक मित्र हो गये। और उसमें अपनी लय और अपना प्रवाह पैदा हो गया। गद्य की अपनी लय होती है। मुझे 'पानी पर पटकथा' में उस लय की झलक दिखलाई पड़ती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा, उपेक्षित, रोग-ग्रस्त और अन्धविश्वास-मूढ़ क्षेत्र है। राजनीतिक दृष्टि से अब पीछे रह गया है, किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से अब भी प्रचुर सम्पन्न है। इन सबकी पकड़ इस पुस्तक में है।—पुस्तक की भूमिका से