Pashchim Aur Cinema

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पश्चिम के सिनेमा की समझ के बगैर भारतीय सिनेमा को भी पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता है। अगर हम गौर करें तो अमेरिका की एक आम छवि हमारे मन में कैसे बनती है, ज़ाहिर सी बात है कि उसमें हॉलीवुड की तमाम फिल्मों की एक बड़ी भूमिका होती है। ठीक इसी तरह से भारतीय लोकप्रिय सिनेमा ने छवियाँ गढ़ने का काम किया। इसने कुछ दिलचस्प 'टाइप' गढ़े, खासतौर पर सत्तर और अस्सी के दशक के सिनेमा ने यह काम बखूबी किया। हर टाइप भारतीय समाज के सामाजिक ताने-बाने के एक हिस्से को दर्शाती थी। इनमें ज़िम्मेदार पिता, ज़िम्मेदार बड़ा भाई, बेटों का ख़याल रखने वाली सहनशील माँ, पति के प्रति कर्तव्यपरायण पत्नी, त्याग करने वाली बहनें, लालची किस्म के सूदखोर, क्रूर और घमंडी ज़मींदार जैसे चरित्र शामिल थे।

बॉलीवुड को गढ़ने में कई तत्त्वों का समावेश रहा है। पहला तत्त्व भारतीय पौराणिक कथाओं का है, जो आमतौर पर बॉलीवुड के प्लाट में कथा के समानान्तर एक और कथा और कहानी के भीतर कहानी के समावेश में दिखता है। दूसरा तत्व संस्कृत के नाटकों से लिया गया, जिसमें कथा के समानान्तर उपकथा व प्रहसन को जोड़ना तथा रस के सिद्धान्त शामिल हैं। तीसरा असर भारत के लोक नाट्य और पारसी थिएटर का देखा जा सकता है। जो कहानी को एक मैजिकल रियलिज्म में बदल देता और कहानी यथार्थवादी ढाँचे के साथ गीतों, नाटकीय काव्यात्मक संवादों और सूत्रधार के इस्तेमाल की इजाज़त देता है। इसके अलावा बॉलीवुड पर सबसे बड़ा असर हॉलीवुड के सिनेमा का देखा जा सकता है। लगभग सभी पश्चिमी जॅनर भारतीय फिल्मों में भी देखे जा सकते हैं।

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9789350009062
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