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Patjhad Mein Vasant

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पतंजलि का एक सूत्र है :

" मन जब दर्द या नकारात्मक विचारों से विचलित हो तो विपरीत विचारों के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए।"

इसी बात को सेंट पॉल कहते हैं :

“जैसे आप अँधेरे से लड़ नहीं सकते हैं वैसे ही दर्द से भी लड़ नहीं सकते पर जिस तरह रोशनी में सब कुछ स्पष्ट हो जाता है वैसे ही चेतना में जब उस पल को स्वीकार कर लेते हैं तब दर्द और हमारे विचारों के बीच का जोड़ टूट जाता है- उसका रूपान्तरण हो जाता है । हमारी चेतना की आग में दर्द इंधन की तरह जल जाता है । "

ओशो का भी यही कहना है : “उदासी और दर्द को हमें घेरने की आदत है वह अपनी पकड़ छोड़ना नहीं चाहता, पर कोशिश करते रहने पर छूटे न भी, राहत आनी सम्भव है । यह दर्द के घेरे को तोड़कर जीवन की नयी शुरुआत करने के लिए ज़रूरी है। बस इसके लिए एक कोशिश की ज़रूरत है।"

इसी सूत्र पर आधारित है मेरा यह उपन्यास पतझड़ में वसन्त ।

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