Patrakarita Dasha Aur Disha
पत्रकारिता : दशा और दिशा
देश-काल और पात्र पर बहस व विमर्श पत्रकारिता का स्वाभाविक कर्म रहा है। यह कार्य देश ही नहीं दुनिया भर को पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन और सूचना व संचार के अन्य माध्यम लंबे समय से करते आ रहे हैं। जन-संचार का रूप लेने के बाद करीब 350 वर्षों तक पत्रकारिता की भूमिका, विश्वसनीयता और कर्तव्यपरायणता पब्लिक डोमेन में सवालों और संदेहों से दूर रही। हालाँकि पत्रकार और सत्ता के टकराव की घटनाओं से पत्रकारिता का इतिहास भरा रहा है। इसके बावजूद जनमानस में पत्रकारिता की छवि असंदिग्ध ही रही। लेकिन उदारीकरण के बाद की ग्लोबल दुनिया में यह मिथक धीरे-धीरे टूटता गया है। बीते तीन दशकों में तो पत्रकारिता की छवि क्रांतिकारी ढंग से बिगड़ी है समाज के अन्य अंगों की ही तरह पत्रकारिता के भी नीति-निर्देशक तत्त्व तेजी से बदले हैं। इस कारण इसके स्वरूप, साधन और लक्ष्य में भी युगांतकारी परिवर्तन हुए हैं। परिणामस्वरूप न सिर्फ पत्र-पत्रिका, पत्रकार और पत्रकारिता की परंपरागत पहचान बदली है, इसकी गरिमा और सीमा खिसकी है बल्कि खुद पत्रकारिता भी बहस का एक ज्वलंत विषय बन गई है।
जनसंचार समाज को दिशा देते हैं। ऐसे में पत्रकारिता की परिवर्तित दशा और दिशा पर वस्तुनिष्ठ मगर गंभीर बहस का आयोजन इस युग की अपरिहार्य जरूरत बन गई है। इससे लंबे समय तक आँख नहीं चुराई जा सकती। प्रस्तुत पुस्तक इसी जरूरत को पूरी करने की एक विनम्र कोशिश है।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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