Pattal Ko Thali Ki Maryada

In stock
Only %1 left
SKU
9789388434775
Rating:
0%
As low as ₹660.25 Regular Price ₹695.00
Save 5%

गुस्ताव जैनुक से बातचीत के क्रम में काफ़्का ने कहा है कि सच्ची कला समय का दर्पण होती है...एक ऐसी घड़ी है जो समय से तेज़ चलती है। यानी कि इसके बरअक्स कुछ कलाएँ ऐसी भी होती हैं जो सुस्त होती हैं और समय से काफ़ी पीछे होती हैं। त्रिलोचन के समय में ऐसी भी काव्य-कला थी जो यथास्थितिवादी थी और प्रयोग के नाम पर नग्नता का प्रदर्शन करती थी। इसके ही समान्तर एक ऐसी भी धारा थी जो प्रगति के नाम पर मार्क्सवाद का कीर्तन कर रही थी। इन दोनों काव्यधाराओं की शक्ति और सीमाओं को पहचान कर अपने जीवन-विवेक से काव्य-विवेक का आविष्कार त्रिलोचन ने किया तथा अपनी सर्जनशीलता के लिए नयी ज़मीन और ज़मीर की तलाश की। प्रगति, प्रयोग की आधुनिकता की आँधी में तथा उपेक्षा एवं तिरस्कार के आवर्त में अपनी अर्जित भावभूमि को सुरक्षित रख पाना त्रिलोचन के ही वश की बात थी।

ISBN
9789388434775
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Pattal Ko Thali Ki Maryada
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/