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"सुपरिचित कथाकार योजना रावत का दूसरा कहानी-संग्रह पूर्वराग इनकी रचनात्मक विकास यात्रा और लेखकीय धैर्य दोनों का परिचायक है। इस संग्रह की कहानियों से गुज़रते हुए यह आश्वस्ति होती है कि सन् 2012 में प्रकाशित इनके पहले कहानी-संग्रह पहाड़ से उतरते हुए की कहानियों में संवेदना की जो लकीरें उभरी थीं, यहाँ तक आते-आते और गहरी हुई हैं, कथा-चरित्रों के गठन में बाहर-भीतर का जो द्वन्द्व दृष्टिगत हुआ था, अब और सघन हुआ है।
इस संग्रह की कहानियों में यात्रा के दृश्य अमूमन आते हैं, पर ये यात्राएँ इकहरी नहीं, बहुआयामी हैं । देश-देशान्तर से लेकर देह-मन तक को खँगालती ये यात्राएँ विचार और संवेदना की परस्पर गलबहियों से जिन जीवन स्थितियों की पुनर्रचना करती हैं, वही हमारे समक्ष ख़ूबसूरत कथा - निर्मितियों के रूप में उपस्थित होती हैं। इस क्रम में कथा चरित्रों के मन का उजास और उनके अन्तःसम्बन्धों की पारस्परिकता जिस अन्तरंगता से पाठकों के साथ एक आत्मीय रिश्ता कायम करती है, उससे नैरेटर और पाठक के दरम्यान मौजूद दूरियाँ सहज ही कम हो जाती हैं। संवेदना की तरलता और विचारों की दृढ़ता के सम्यक सन्तुलन के बीच अतीत और वर्तमान तथा परम्परा और आधुनिकता की अर्थपूर्ण जिरहों को स्वप्न और औत्सुक्य के धागे से बुनती इन कहानियों के पात्र कब और कैसे आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। सत्य और साहस की संयुक्त वीथियों में खुलने -निखरने वाली ये कहानियाँ स्वयं को स्वयं के आईने में देखने- टटोलने का एक ईमानदार जतन करती हैं जिसमें हम सब अपने-अपने हिस्से की धूप-छाँह व राग-रंग को देख-परख सकते हैं।
- राकेश बिहारी"
ISBN
9789357759021