Prakrit Anuvad Kala
प्राकृत अनुवाद कला
प्राकृत भाषा का सम्बन्ध भारोपीय परिवार की भारतीय आर्यशाखा से रहा है। ई. पूर्व छठी सदी में भगवान महावीर के गणधरों और उनके शिष्य-प्रशिष्यों ने जिन आगम-ग्रन्थों की रचना की, उन सबकी भाषा प्राकृत रही। यह लेखन या तो शौरसेनी प्राकृत में किया गया या फिर अर्धमागधी (मागधी और शौरसेनी के समन्वित रूप) में।
'प्राकृत अनुवाद कला' में इसी शौरसेनी और अर्धमागधी आगम ग्रन्थों से प्राकृत के व्याकरणिक प्रयोग उद्धृत किए गये हैं। अधिकांश प्रयोग शौरसेनी ग्रन्थों से एवं कुछ अर्धमागधी ग्रन्थों से। इस पुस्तक के अध्ययन से प्राकृत भाषा के अनुसन्धेत्सु विद्वान एवं छात्र यह बड़े सहज ढंग से जान सकेंगे कि किस ग्रन्थकार ने अपने लेखन में प्राकृत के संज्ञा, क्रिया, कृदन्त एवं अव्यय के विभिन्न रूपों में से किन-किन रूपों को अपनी रचनाओं में लिया है। पुस्तक के अन्त में शौरसेनी और अर्धमागधी प्राकृत की तुलनात्मक विशेषताओं को भी दर्शाया गया है।
प्राकृत भाषा के अध्येताओं के लिए एक उपयोगी कृति ।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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