Pralekhan-Praroop
प्रालेखन प्रारूप -
आलेखन पर स्वतन्त्र रूप से लिखी गयी अपने ढंग की यह पहली पुस्तक है। इसमें आलेखन को एक नये शब्द 'प्रालेखन' द्वारा व्यक्त कर उसे गरिमा प्रदान की गयी है।
लोगों को कार्यालयीन जीवन से इतर भी अनेक संस्थाओं, अधिकारियों व अन्य प्रमुख व्यक्तियों को समय-समय पर आवेदन तथा पत्र लिखने पड़ते हैं। उसके महत्त्व को स्वीकार करते हुए अन्य पुस्तकों में| इसका उल्लेख मात्र किया गया है, वह भी सतही ढंग से। प्रस्तुत पुस्तक में इस प्रकार के आवेदनों और पत्रों पर पहली बार विस्तार से चर्चा की गयी है। प्रत्येक अध्याय के प्रारम्भ में तत्सम्बन्धी भूमिका दी गयी है।
राजभाषा हिन्दी के बहुआयामी विकास के साथ अब यह आवश्यक हो गया है कि किसी भी विषय को लेकर अलग-अलग आत्मभरित एवं स्वतन्त्र पुस्तकें लिखी जायें। इसी दिशा में किया गया यह एक विनम्र प्रयास है। कार्यालयों, संस्थाओं विद्यार्थियों एवं सामान्य जनता के दैनिक जीवन में एक विशेष उपयोगी पुस्तक।
Publication | Vani Prakashan |
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