Prasad Ki Kahaniya Samajik Aur Sanskritik Adhyayan
प्रसाद की कहानियाँ - सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन -
हिन्दी कहानी की इस लम्बी यात्रा में जयशंकर प्रसाद की कथात्मक उपलब्धियाँ एक मील का पत्थर हैं। वस्तुतः आधुनिक हिन्दी कहानी के जन्मदाताओं में प्रेमचन्द के साथ प्रसाद का भी नाम लिया जा सकता है। जहाँ प्रेमचन्द की कहानियाँ जीवन के खुरदरे यथार्थ को एक आदर्शात्मक परिवेश में प्रस्तुत करती हैं, वहाँ प्रसाद की कहानियों में वे यथार्थ भावात्मकता का जामा पहनकर उपस्थित हुए हैं। कहानी को काव्यात्मक आधारशिला प्रदान करने पर भी प्रसाद ने सामाजिक यथार्थ को कभी भी नकारा नहीं है। उनकी कहानियों में भारतीय समाज एवं संस्कृति का सच्चा स्वरूप सम्पूर्णता के साथ उभरकर आया है। भारतीय संस्कृति के महान पुजारी प्रसाद के लिए यह स्वाभाविक है कि अतीत की उस पुनीत संस्कृति के स्वर्णिम पृष्ठों को फिर से प्रकाश में लायें और वर्तमान को प्रेरणादायक बनायें।
प्रस्तुत लघु शोध-प्रबन्ध प्रसाद की कहानियों में अभिव्यक्त सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं के अध्ययन का एक लघु प्रयास है। सर्वतोमुखी प्रतिभा वाले प्रसाद के साहित्य-जगत में हमेशा कहानी अपेक्षाकृत उपेक्षा का पात्र रही है। अतः आशा है कि प्रसाद-कहानी-साहित्य के मूल्यांकन की दिशा में प्रस्तुत लघु शोध-प्रबन्ध भी अपनी एक विशिष्ट भूमिका अदा कर सकेगा।
साहित्य में व्यक्तित्व प्रकाशन की एक नयी प्रणाली प्रसाद में देखी जा सकती है, जो किंचित जटिल होते हुए भी मौलिक है। साहित्य का पूर्णतया आस्वादन करने के लिए साहित्यकार को सामाजिक और व्यक्तिगत परिस्थितियों से परिचय प्राप्त करना पड़ता है। जयशंकर प्रसाद के साहित्य में व्यक्तित्व, सम्पूर्ण जीवन की पीठिका पर आश्रित है और उसे उन्होंने एक कुशल शिल्पी की भाँति अभिव्यक्ति दी है। वे हिन्दी के प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकारों में अग्रणीय हैं। डॉ. नगेन्द्र प्रसाद की प्रतिभा का मर्म निर्देश करते हुए लिखते हैं- "प्रसाद जी हिन्दी जगत में अमर शक्तियाँ लेकर अवतीर्ण हुए थे। उनकी प्रतिभा सर्वथा मौलिक थी। उन्होंने साहित्य के जिस अंश को स्पर्श किया, उसी को सोना बना दिया। उनका महत्व ऐतिहासिक तो है ही वे एक प्रकार से आधुनिक युग के निर्माता भी हैं। उन्होंने ही सबसे पूर्व शुष्क उपयोगितावाद के विरुद्ध भावुकता का विद्रोह खड़ा किया, या यों कहिए कि झूठी भावुकता (सैंटिमेंटलिज़्म) के विरुद्ध सच्ची रसिकता का आदर्श स्थापित किया। अकर्तृत्व (पास्सिविटी) के युग में अभिव्यंजना (सब्जेक्टिविटी) की पुकार करने वाले वे कवि थे। उन्होंने हिन्दी को एक नवीन कला और नवीन भाषा प्रदान की। ऐतिहासिक महत्व के अतिरिक्त काव्य के चिरन्तन आदर्शों के अनुसार भी उनका स्थान बड़ा ऊँचा है।