Prasar Bharti Aur Prasaran Neeti
In stock
Only %1 left
SKU
9788170556817
As low as
₹470.25
Regular Price
₹495.00
Save 5%
‘प्रसार भारती' ने एक आस जगाई है, दूरदर्शन और रेडियो सत्ता की गुलामी छोड़ स्वायत्त बोर्ड के अन्तर्गत काम करने लगा है। जनतन्त्र के लिए उसका होना ज़रूरी है। प्रसार भारती के बनने और बोर्ड के बनने की कहानी लम्बी और दिलचस्प है। आज उस पर ख़तरे मँडराने लगे हैं। स्वायत्तता एक दैनिक आत्मसंघर्ष का मूल्य है, प्रदत्त मूल्य नहीं है। प्रसार भारती को सतत संघर्ष करना है। जनसंचार के किसी भी विद्यार्थी के लिए यह एक पठनीय विषय है। छत्तीस चैनलों वाले देश के लिए एक स्पष्ट प्रसारण नीति का होना भी ज़रूरी है। इतने चैनलों के नियमन के लिए प्रसारण नीति को बनाने का आग्रह चौरानवे में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में किया था, लेकिन नीति अभी तक नहीं बन पायी है। राजनीतिक अवसरवाद और प्रशासनिक तदर्थवाद उसे ठण्डे बस्ते में डाल चुके हैं। यह किताब प्रसार भारती को लेकर हुए निर्णयों और प्रसारण नीति को लेकर चले विवादों को आलोचनात्मक नज़र से देखती है। परिशिष्ट में 'प्रसार भारती' (1990) मूल कानून के हिन्दी अनुवाद के अलावा प्रसार भारती बनाये जाने के पहले के विभिन्न प्रयासों यथा ‘आकाश भारती' (1978), स्वायत्तता से सम्बन्धित जोशी रिपोर्ट तथा 1997 में प्रस्तावित 'प्रसारण नीति विधेयक' का प्रारूप भी दिया जा रहा है जो पाठकों को अन्यथा उपलब्ध नहीं है। इन टिप्पणियों और दस्तावेजों से युक्त यह पुस्तक जन-संचार कर्म से जुड़े हर व्यक्ति के लिए एक अनिवार्य पुस्तक है। -प्रकाशक
ISBN
9788170556817