Pravahman Ganga
प्रवहमान गंगा -
प्रवहमान गंगा की कहानी शुरू होती है ऋषिकेश से। इस कहानी के दो मुख्य पात्र है- शाक्य और शरण्या। दोनों ही युवा हैं। शरण्या आयी है वर्षों पूर्व लापता हुए अपने दादा की तलाश में, जो संन्यास लेकर हिमालय के किसी आश्रम में रहते हैं। गंगा के घाट पर उसका परिचय शाक्य से होता है और फिर शुरू होती है गंगा के रास्ते से दोनों की यात्रा। वे जा रहे हैं ऋषिकेश से देवप्रयाग और वहाँ से टिहरी, चम्बा, उत्तरकाशी, गांगुरी, धाराली, मुखबा, भैरवघाट, गंगोत्री होते हुए। गोमुख रास्ते में कितने ही लोगों से उनका परिचय होता है। ये लोग हैं साधु, संन्यासी, दुकानदार, भिखारी, पुजारी, शिक्षक, पत्रकार व आम स्त्री-पुरुष, जो गंगा की बातें बताते हैं; बताते हैं गंगा के दोनों किनारों के लोगों के इतिहास, समाज, संस्कृति व धर्म की बातें। विभिन्न अनुभवों के आलोक से भर उठता है शाक्य व शरण्या का अन्तर्मन। लगता है, गुम हुए दादा की तलाश में आकर उन्होंने ढूँढ़ लिया है पाँच हज़ार वर्षों के भारतवर्ष को।
इस उपन्यास का एक और पात्र है—ह्यूमोर। वह जर्मनी से आया है। उसे नदियों से प्रेम है और नदियों के बारे में जानने के लिए वह विभिन्न देशों में घूमता-फिरता रहता है। वह सिन्धु, राइन, नील, जॉर्डन आदि नदियों की बातें बताता है। बताता है गंगा के साथ इन सब नदियों के सम्पर्क की बात।
इस उपन्यास में केवल गंगा और उसके किनारे बसे लोगों की ही नहीं है, बल्कि है हिमालय के अतुलनीय सौन्दर्य का चित्रण है। इस कृति में भारतवर्ष की अध्यात्म-साधना और दो युवाओं के मन के अव्यक्त अभिव्यक्ति का चित्रण है।
'प्रवहमान गंगा' में इतिहास, दर्शन, भ्रमण और मानवीय सम्बन्धों का अद्भुत व सुन्दर सम्मिश्रण है। इसमें भ्रमण पिपासुओं को मिलेगा भ्रमण का आनन्द, साहित्यानुरागी पाठकों को मिलेगा महत साहित्य का स्वाद, ज्ञानियों को मिलेगा ज्ञान का सन्धान।