Prayog Champaran
प्रयोग चम्पारण -
मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है, कहने वाले गाँधी ने चम्पारण सत्याग्रह के दौरान अपनी वेश-भूषा बदली, भोजन बदला, संघर्ष का नया तरीक़ा अपनाया और लगभग जादू वाले अन्दाज़ में वहाँ के लोगों और बाहर से जुटे अपने सहयोगियों से ज़बरदस्त रिश्ता और संवाद क़ायम किया। जिस इलाक़े को वे नहीं जानते थे, जिस नील को नहीं जानते थे, जिस बोली भोजपुरी और दस्तावेज़ों की कैथी लिपि को नहीं जानते थे उनसे उनका संवाद और सम्बन्ध कैसे हुआ और उन्हें गाँधी ने कितना बदला यह तो हैरान करता ही है लेकिन गाँधी ने चम्पारण को नील से मुक्ति दिलाने के साथ देश और दुनिया को उस ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति दिलाने की शुरुआत भी कर दी जिसका खुफ़िया और प्रशासनिक तन्त्र हर घर, हर व्यक्ति से लेकर दुनिया पर नज़र रखता था। और जब सड़क, रेल, फ़ोन और लन्दन से तीन-तीन केबल लाइनों के ज़रिये जुड़कर यह महाबलि ख़ुश हो रहा था कि अब उसके राज को कोई ख़तरा नहीं हो सकता, तब गाँधी ने किस तरह अपने कम्युनिकेशन कौशल से राज को उखाड़ा, यह किताब उसी चीज़ को समझने की कोशिश है। वर्षों के श्रम, अध्ययन और चम्पारण तथा गाँधी से रिश्ता रखनेवाले लेखक ने इस पहेली को समझने-बताने का यह कैसा प्रयास किया है यह पाठक ही तय कर सकते हैं।