Premchand : Dalit Jeevan Ki Kahaniya
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"प्रेमचन्द दलित जीवन की कहानियाँ -
प्रेमचन्द को किसी विशेषण में नहीं बाँधा जा सकता। साहित्य का यह श्रमजीवी जीवनपर्यन्त अपनी क़लम को हथियार बना लड़ता रहा, समाज की हर रूढ़ि के ख़िलाफ़, हर उस विचार के ख़िलाफ़ जो प्रगतिशीलता में बाधक बनी।
प्रेमचन्द को हिन्दू समाज व्यवस्था के प्रति किसी प्रकार का भ्रम न था। वे एक ऐसे हिन्दुस्तान का स्वप्न देख रहे थे जिसमें किसी भी प्रकार की कोई ग़ुलामी न होगी, कोई किसी का जाति-धर्म अथवा लिंग के आधार पर शोषण नहीं कर सकेगा। यह अकारण नहीं है कि उन्होंने लिखा- 'पुरोहितों के प्रभुत्व के दिन अब बहुत थोड़े रह गये हैं और समाज और राष्ट्र की भलाई इसी में है कि जाति से यह भेद-भाव, यह एकांगी प्रभुत्व, यह चूसने की प्रवृत्ति मिटायी जाये क्योंकि जैसा हम पहले कह चुके हैं, राष्ट्रीयता की पहली शर्त वर्ण-व्यवस्था, ऊँच-नीच के भेद और धार्मिक पाखण्ड की जड़ खोदना है।'
कहना न होगा कि 1990 के बाद भारतीय सामाजिक संरचना और राजनीति में जो बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ा, उसे आधी सदी पहले प्रेमचन्द ने देख लिया था। आज दलितों में आत्मसम्मान की भावना आ चुकी है। वे अपना हक़ जान चुके हैं और वे सरकार के नहीं, सरकार उनकी मोहताज़ हो गयी है। आज किसी दलित का शोषण उच्च वर्ण के लिए असम्भव व्यापार है। प्रेमचन्द का स्वप्न धीरे-धीरे सार्थक होता दीख रहा है। भारतीय समाज, ख़ासकर हिन्दू समाज का बदरंग चेहरा ठीक होने लगा है। लोगों को प्रेम की महत्ता और जाति-पाँति की निरर्थकता समझ में आने लगी है।
प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज, उसके जीवन, दुश्वारारियों पर पैनी निगाह रख लिखी कहानियाँ, संकलित हैं। प्रेमचन्द के शोधार्थियों व विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक एक संचयन की तरह है तो आम पाठकों के लिए भी बराबर की उपयोगी।
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ISBN
9788126340972