Punchnaad
पंचनाद -
साहित्य और समाज का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है। साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। इसी को थोड़ा और विस्तार दें तो साहित्य समाज का गत्यात्मक दर्पण है। यदि समाज को हम एक सदेह इकाई मान लें तो साहित्य उसकी वाणी है। प्रायः माना जाता है कि साहित्य की विषय-वस्तु युगीन परिस्थितियों और परिवेश से ही अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम और साधन लिए होती है। किन्तु भक्तिकाल की समग्र परिस्थितियों तथा साहित्यिक अभिव्यक्तियों को विवेचित करने पर हमें उपर्युक्त मान्यता से असहमत होने का प्रभावशाली कारण मिल जाता है। चाहे इस काल के काव्य में भक्ति की प्रधानता के कारण इसे भक्ति काल की संज्ञा से अभिहित किया गया हो, परन्तु इस काव्य का अन्वेषक दृष्टि से विचारपूर्ण अध्ययन किया जाये तो भक्ति के साथ-साथ युग-चेतना तथा क्रान्ति-भावना की एक समृद्ध परम्परा हमें उपलब्ध होती है।