Purani Jutiyon Ka Koras

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"पुरानी जूतियों का कोरस - बीसवीं सदी की हिन्दी कविता में नागार्जुन की एक अपनी ही अहमियत है। 'बादल को घिरते देखा है' जैसी ठेठ छन्दोबद्ध पारम्परिक कविताओं से लेकर 'हरिजन गाथा' जैसी क्रान्तिकारी कविताओं तक नागार्जुन की कविताओं का रिक्थ आश्चर्य में डालने वाला है। अगर बीसवीं सदी की हिन्दी कविता में व्यापकता की दृष्टि से एक त्रिमूर्ति का चयन करना हो तो निराला और मुक्तिबोध के साथ ही नागार्जुन का नाम अनिवार्य रूप से शामिल होगा। सहज मानवीय संवेदनाओं से लेकर सूक्ष्म राजनैतिक कविताओं तक नागार्जुन ने अनेक प्रकार की कविताएँ रची हैं और अपनी सहज-सरल शैली में भारतीय यथार्थ की सच्ची तस्वीरें अंकित की हैं। पुरानी जूतियों का कोरस में सन् 1944 से लेकर 1981 तक की कविताओं का एक विविध चयन है। चूँकि नागार्जुन अपनी रचनाओं को कभी क्रमबद्ध रूप से नहीं प्रकाशित कराते रहे और चूँकि उनका जीवन भी सतत यायावरी के कारण अस्थिर रहा, इसलिए ऐसा होना सहज स्वाभाविक है। तो भी इस चयन से पाठक को आसानी से उनके तेवर का अन्दाज़ा हो जायेगा। हर हाल में नागार्जुन की दृष्टि दबे-कुचले वर्ग पर रहती है और वे उसके पक्ष में खड़े होने को ही अपनी कविता की सार्थकता मानते हैं। उनकी कविताओं में जहाँ फ़सल और हेमन्ती बादल हैं जैसी सूक्ष्म संवेदना की रचनाएँ हैं, वहीं साथी गणपति और फाँसी की सज़ा पाये हुए बारह वीर तिलंगे जैसी ओजपूर्ण कविताएँ भी हैं और अन्न-पचीसी जैसी तीखे व्यंग्य से रंजित कविताएँ भी। वैसे नागार्जुन व्यंग्य और विडम्बना के कवि हैं और जहाँ भी वे विसंगति देखते हैं, अपनी कविता के माध्यम से उस पर कड़ा प्रहार करने से नहीं चूकते। "
ISBN
9788170553984
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