Rachna Ka Paksh
रचना का पक्ष -
'रचना का पक्ष' हिन्दी के सुपरिचित आलोचक नंदकिशोर नवल के लेखों का छठा संग्रह है। उनके स्फुट लेख भी उनके योजनाबद्ध लेखन की तरह महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि उनकी एक प्रासंगिकता होती है। इसका प्रमाण इस पुस्तक में शिवपूजन सहाय और राहुल सांकृत्यायन पर लिखे गए लेख ही नहीं हैं, निराला और मुक्तिबोध की कविताओं की उनके द्वारा की गयी पाठाधारित व्याख्या भी है। पुस्तक की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सामग्री इसके परिशिष्ट में दिया गया आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास का प्रारूप है। अब तक साहित्य में इतिहास-दर्शन की ही चर्चा होती रही है। नवल द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रारूप उनका इतिहास-लेखन की दिशा में उठाया गया पहला क़दम है।
हिन्दी आलोचना दिन-प्रतिदिन अगम्भीर होती जा रही है। दूसरी तरफ़ उसमें जिस भाषा का प्रयोग किया जा रहा है, उससे लगता है कि वह पहली बार सयानी हो रही है! जहाँ तक मार्क्सवादी आलोचना की बात है, अनेक मार्क्सवादी आलोचक चुप हो चुके हैं और जो बचे हुए हैं, वे जगद्गति से अप्रभावित अपनी लाइन पर चले जा रहे हैं। ऐसे में आलोचना में जो कुछ सार्थक स्वर हैं, उनमें निस्सन्देह एक स्वर नवल का है-उठता, गिरता, नयी स्थितियों से टकराता, अपने को जाँचता, सुधारता और आगे बढ़ता।