Rajbhasha Hindi Vivechan Aur Prayukti
राजभाषा हिन्दी विवेचन और प्रयुक्ति -
आज हिन्दी स्वतन्त्र भारत की संविधानसम्मत राजभाषा है, किन्तु अंग्रेज़ी का वर्चस्व भस्मासुर की तरह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। स्वतन्त्रता पूर्व जिन क्षेत्रों में राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग एवं प्रसार व्यापक रूप में किया जाता था, आज वहाँ भी अंग्रेज़ी का बोलबाला है। भारतीय संविधान के आठवें अनुच्छेद में भारत में सर्वाधिक प्रयुक्त 18 भारतीय भाषाओं को अनुसूचित किया गया है, ऐसी स्थिति में राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सह राजभाषा, द्वितीय राजभाषा, राज्यभाषा और संपर्क-भाषा के रूप में हिन्दी की स्थिति पूरी तरह उलझी हुई दिखाई पड़ती है। प्रस्तुत ग्रन्थ राजभाषा का ऐसा गहन समीक्षात्मक विवेचन है जिसमें राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राजभाषा से जुड़े पक्षों की विवेचना की गयी है। वस्तुतः यह समस्या सभी विकासशील, लोकतान्त्रिक और बहुभाषिक देशों की है। इन समस्याओं का विश्लेषण करते हुए भारतीय सन्दर्भ में राजभाषा के प्रश्न को विवेचनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। साथ ही लेखक ने राजभाषा हिन्दी के स्वरूप को एक सशक्त प्रयुक्ति रजिस्टर के रूप में पहचान कर स्थापित किया है, जो आज अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में एक अहम आवश्यकता बन गया है। इसी प्रयोजनमूलकता के आधार पर लेखक ने हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन पर ज़ोर दिया है।
भारतीय राजभाषा के सन्दर्भ में इस प्रकार का शोधपरक, रचनात्मक लेखन, हिन्दी में कदाचित पहली बार किया गया है। यह सामग्री न केवल राजभाषा के क्षेत्र में शोध कार्यों को बढ़ावा देगी, बल्कि राजभाषा हिन्दी की समस्या को व्यावहारिक रूप में समझने में सहायक सिद्ध होगी। इस ग्रन्थ में राजभाषा से सम्बन्धित अधिनियमों और नियमों आदि की व्याख्या के साथ उनका भाषा वैज्ञानिक विवेचन भी किया गया है। अतः यह ग्रन्थ प्रत्येक केन्द्रीय कार्यालय के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ हिन्दी भाषी राज्यों के कार्यालयों, पत्रकारों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों के लिए भी उपयोगी होगा।
इस पुस्तक के लेखक डॉ. किशोर वासवानी गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग (भारत सरकार) में हिन्दी प्राध्यापक, दूरसंचार विभाग के हिन्दी अधिकारी, सिन्धी भाषा परिषद के निदेशक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय में क्षेत्रीय अधिकारी रह चुके हैं।