Rajbhasha Vividha

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राजभाषा विविधा - 
डॉ. माणिक मृगेश भारत के उन विशेष वरिष्ठ हिन्दी अधिकारियों में से हैं, जो कारयित्री प्रतिभा के धनी हैं। श्री मृगेश मूलतः व्यंग्यकार हैं। ये गद्य और पद्य दोनों में व्यंग्य की रचनाएँ निहायत सरलता और स्वाभाविकता से लिखते हैं। वे प्राचीन ब्रज काव्य परम्परा से जुड़े होने के साथ-साथ राजभाषा के अधुनातन प्रयोग एवं व्यवहार में भी दक्ष हैं। अपनी सर्जकता के कारण डॉ. माणिक मृगेश अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से अपनी निजता की अलग पहचान बना ये  हुए हैं।
‘राजभाषा विविधा' मैं आद्योपान्त  मनोयोगपूर्वक पढ़ गया हूँ। इसका लक्ष्य है- केन्द्र सरकार व केन्द्रीय संस्थानों में कार्यरत विभिन्न स्तरों में कर्मचारियों को राजभाषा हिन्दी की सामान्य जानकारी देना। राजभाषा के विभिन्न रूपों का इसमें सरल निरूपण किया गया है। इस दृष्टि से पुस्तक की विषयवस्तु, अपेक्षित वैविध्यपूर्ण है। किसी भी कार्यालय के रोज़मर्रा के कारोबार में वर्तनी शुद्धि एवं पारिभाषिक शब्दावली की जानकारी अपेक्षित है। बिना सही वर्तनी एवं अपेक्षित पारिभाषिक शब्दावली के सही ज्ञान के उसका लेखन में सही प्रयोग कर पाना अ सम्भव है। हमारे कार्यालयों में कार्यरत विभिन्न स्तरों के कर्मचारयिों के लिए अनुवाद के व्यावहारिक रूप की जानकारी अनिवार्य रूप से आवश्यक है। अनुवाद तो किसी भी व्यक्ति की एक स्वाभाविक मानस प्रक्रिया है। हम जब भी किसी को सुनते हैं, देखते हैं, पढ़ते हैं तो हमारी निजी भाषा में उसके अनुवाद की एक सहज मानस प्रक्रिया शुरू हो जाती है अतः राजभाषा हिन्दी के व्यवहार एवं प्रयोग करने वाले हर कर्मचारी के लिए अनुवाद किसे कहते हैं, अनुवाद का स्वरूप कैसा होता है, अपने रोज़मर्रा के वाक्यों का अपेक्षित अनुवाद कैसे किया जा सकता है आदि बातों की जानकारी अपेक्षित है विद्वान लेखक ने वरिष्ठ अधिकारी के विशाल अनुभव के आधार पर अनुवाद से सम्बद्ध विभिन्न मुद्दों को सरल भाषा में समझाया है।
राजभाषा - विविधा इस दृष्टि से रिफाइनरियों में राजभाषा हिन्दी में कारोबार करनेवाले हर कर्मचारी के लिए एक अनिवार्य व्यावहारिक मार्गदर्शिका (प्रैक्टिकल गाइड) है। मैं यह भी कह सकता हूँ कि प्रस्तुत पुस्तक कॉलेज एवं महाविद्यालयों के उन विद्यार्थियों के लिए भी उपाय हो सकती है जो व्यावहारिक हिन्दी का पाठ्यक्रम पढ़ते हैं। कॉलेजों व महाविद्यालयों में जहाँ प्रायः पांडित्यपूर्ण आलंकारिक एवं साहित्यिक भाषा में व्यावहारिक हिन्दी की पढ़ाई होती है वहाँ के छात्रों के लिए यह सरल भाषा में एवं कार्यालयीन आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई प्रस्तुत पुस्तक 'राजभाषा विविधा' विशेष उपयोगी साबित हो सकती है। मेरी ऐसी मान्यता है।
- प्रो. रमण लाल पाठक
अध्यक्ष हिन्दी विभाग
महाराजा सयाजीराव गायकवाड़

ISBN
9788170552604
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