Ramkatha Kaljayee Chetna
रामकथा कालजयी चेतना -
पुरोवाक् -
बचपन से ही राम नाम का उच्चारण हमारी दैनिक प्रार्थना का अंग था। रामायण की कथा केरल के हिन्दू घरों में महाकवि एषुत्तच्छन के अध्यात्म रामायणम् किळिप्पाट्ट के माध्यम से प्रचलित थी। घर के कुलवृद्ध कर्कटक के महीने में हर सन्ध्या में देवी देवताओं के चित्र के सामने दीप जलाकर अध्यात्म रामायण का पाठ करते थे। वैसे ही जैसे लोग उत्तर भारत में रामचरित मानस का पाठ करते थे। राम और हनुमान बचपन में हमारे प्रिय पौराणिक पात्र थे।
श्री नरेन्द्र कोहली का उपन्यास अभ्युदय पहली बार पढ़ा तो लगा कि राम की कहानी में कहीं-कहीं जो कुछ भी शंकाएँ उठती थीं, उन सब का समाधान लेखक ने अपनी रचना में प्रस्तुत किया है। अभ्युदय के अध्ययन से रामकथा की गहनाताओं में जाने का असर मिल रहा था। समझ में आया कि राम, सीता, लक्ष्मण आदि भारतीय जनमानस में क्यों और कैसे प्रविष्ट हुए हैं।
रामकथा के माध्यम से श्री नरेन्द्र कोहली पीड़ित जनता के अभ्युदय के लिए जन-आन्दोलन के पक्षधर के रूप में सामने आये। इच्छा हुई कि रामकथा को अधिक गहनता से जानना है और समझना है। परिणामत: वाल्मीकी रामायण के राम को निकट से जानने का प्रयत्न आरम्भ किया। लेकिन वाल्मीकीय रामायण के राम को अधिक समझने के लिए नहीं था; क्योंकि वाल्मीकी रामायण के राम वही थे, जो जन-मानस में स्थान पाये थे।
समझ में आया कि राम विश्वामित्र से जन कल्याण की मन्त्रदीक्षा प्राप्त करके वन जाने के अवसर की प्रतीक्षा में थे और कैकेई के दो वरों के माध्यम से उन्हें वन जाने और पीड़ित जनता का नेतृत्व करने का अवसर मिल रहा था। फिर तो संघर्ष होना ही था और अन्ततः युद्ध हुआ। राक्षसी शक्तियों का अन्त होकर जनता का अभ्युदय हुआ।
दोनों ओर से राम के सम्बन्ध में जो कुछ जाना है, पहचाना है, उसी को इस पुस्तक में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है। आशा है कि राम को अधिक जानने और भारतीय समाज की वर्तमान समस्याओं के समाधान के लिए राम की क्षमता का उपयोग करने के लिए यह अध्ययन सहायक हो सकता है।