Rani Naagfani Ki Kahani

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9789352292042
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"यह एक व्यंग्य-कथा है। ‘फेंटजी’ के माध्यम से मैंने आज की वास्तविकता के कुछ पहलुओं की आलोचना की है। ‘फेंटजी’ का माध्यम कुछ सुविधाआंे के कारण चुना है। लोक-कल्पना से दीर्घकालीन सम्पर्क और लोक-मानस से परम्परागत संगति के कारण ‘फेंटजी’ की व्यंजना प्रभावकारी होती है। इसमें स्वतन्त्राता भी काफी होती है और कार्यकारण सम्बन्ध का शिकंजा ढीला होता है। यों इसकी सीमाएँ भी बहुत हैं। मैं ‘शाश्वत साहित्य’ रचने का संकल्प करके लिखने नहीं बैठता। जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं होता, वह अनन्तकाल के प्रति कैसे हो लेता है, मेरी समझ से परे है। मुझ पर ‘शिष्ट हास्य’ का रिमार्क चिपक रहा है। यह मुझे हास्यास्पद लगता है। महज हँसाने के लिए मैंने शायद ही कभी कुछ लिखा हो और शिष्ट तो मैं हूँ ही नहीं। मगर मुश्किल यह है कि रस नौ ही हैं और उनमें ‘हास्य’ भी एक है। कभी ‘शिष्ट हास्य’ कह कर पीठ दिखाने में भी सुभीता होता है। मैंने देखा हैµजिस पर तेजाब की बूँदें पड़ती हैं, वह भी दर्द दबाकर, मिथ्या अट्टहास कर, कहता है, ‘वाह, शिष्ट हास्य है।’ मुझे यह गाली लगती है।"
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9789352292042
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