Rashtravad Ka Ayodhya Kand
'राष्ट्रवाद का अयोध्या कांड' में पहली बार सप्रमाण दिखाया गया है कि छः दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वंस के समय कौन क्या कर रहा 'था। इन पृष्ठों पर 1990 से 1992 के बीच रामजन्मभूमि आन्दोलन के आस-पास हुई राजनीति का एक ऐसा ब्योरा दर्ज है जो अपनी प्रवाहपूर्ण घटनात्मकता और विश्लेषण के जरिये पाठकों को गहरे निष्कर्षों तक पहुँचाता है। अयोध्या, जयपुर और अहमदाबाद की जिन साम्प्रदायिक वारदातों का विवरण यह पुस्तक देती है, उनमें राज्य और उसके कारकुन साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देते नजर आते हैं। लेकिन, सामुदायिक तानेबाने के अंग के रूप में व्यक्ति सरकार और राजनीतिक दलों की मदद के बिना मानवीयता के रक्षक के रूप में उभरता है। यह रोचक और गम्भीर पुस्तक अपने पाठकों को विचारों की एक अलग दुनिया में ले जाती है। जिसमें बने बनाये फार्मूलों को तिलांजलि दे कर साम्प्रदायिकता को समझने का। एक नयी दृष्टि पेश की गयी है। 'राष्ट्रवाद का अयोध्या कांड' अपने तथ्यो, विवरणों और विश्लेषण के साथ साम्प्रदायिक राजनीति को समझने का गुटका है।