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Rigveda Parichaya

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ऋग्वेद आदिम मानव सभ्यता के बाद का विकास है। लेकिन इसमें तत्कालीन सभ्यता के पहले के भी संकेत हैं। ऋग्वेद में इतिहास है, ऋग्वेद इतिहास है। प्राचीनतम काव्य है। प्राचीनतम दर्शन है। प्राचीनतम विज्ञान है। इसमें प्राचीनतम कला और रस-लालित्य है। प्राचीनतम सौन्दर्यबोध भी है। अतिरिक्त जिज्ञासा है। सुख आनन्द की प्यास है। ऋग्वेद में भरापूरा इहलोकवाद है और आध्यात्मिक लोकतन्त्र भी है। भारत के आस्तिक मन में यह ईश्वरीय वाणी है और अपौरुषेय है। वेद वचन अकाट्य कहे जाते हैं। अन्य विश्वासों की तरह यहाँ ईश्वर के अविश्वासी नास्तिक नहीं हैं। नास्तिक-आस्तिक के भेद वेद विश्वासअविश्वास से जुड़े हैं। जो वेद वचनों के निन्दक हैं, वे नास्तिक हैं। वेद वचनों को स्वीकार करने वाले आस्तिक हैं। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। विश्व मानवता का प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख है। प्रायः इसे रहस्यपूर्ण भी बताया जाता है। इसके इतिहास पक्ष की चर्चा कम होती है। इसका मूल कारण इतिहास की यूरोपीय दृष्टि है। भारत में इतिहास संकलन की पद्धति यूरोप से भिन्न है। स्थापित यूरोपीय दृष्टि से भिन्न दृष्टि काल मार्क्स ने भी अपनायी थी। इस दृष्टि से ऋग्वेद का विवेचन भारतीय मार्क्सवादी विद्वानों ने भी किया है। ऋग्वेद साढ़े दस हज़ार मन्त्रों वाला विशालकाय ग्रन्थ है। आधुनिक अन्तर्ताना-इंटरनेट तकनीकी से बेशक इसकी सुलभता आसान हुई है लेकिन इसका सम्पूर्ण अध्ययन परिश्रम साध्य है। सभ्यता और संस्कृति के इतिहास में ऋग्वेद दुनिया का प्राचीनतम काव्य साक्ष्य है। प्राचीन मानव समाज की जानकारी के लिए ऋग्वेद से प्राचीन कोई अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। सभ्यताओं के विकास को समझने के लिए ऋग्वेद ही एक मात्र उपाय है। ऋग्वेद को अलग हटाकर मानव सभ्यता का विवेचन सम्भव नहीं है। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। ऋग्वेद के प्रति विश्व जिज्ञासा है। यह असाधारण ग्रन्थ है। इसका ज्ञान भी असाधारण ग्रन्थ द्वारा ही सम्भव है लेकिन इसका एक साधारण परिचय भी हो सकता है। साधारण परिचय के दो साधारण लाभ हैं। पहला-साधारण परिचय ऋग्वेद के प्रति हमारी जानकारी को बढ़ा सकता है। दूसरा कि साधारण परिचय हमारी जिज्ञासा को और भी असाधारण बना सकता है। ऋग्वेद से भारत के युवजन का परिचय ज़रूरी है।

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