Sadiyon Ka Saransh
सदियों का सारांश -
'सदियों का सारांश' की ग़ज़लों में संचित अपार ऊर्जा का अजस्र स्रोत सतत संघर्ष को प्रस्तुत शाइर की चेतना में है। इस ऊर्जा से सम्पन्न होने के कारण 'द्विज' जी निरन्तर अलग-अलग पहलू से अपने आसपास को देखते हैं, परखते हैं और प्रयास करते हैं कि जो सत्य और तथ्य, वर्तमान ग़ज़ल का कथ्य बन सकें, उन्हें अपनी विशिष्ट शैली में शास्त्रीय और कलात्मक पूर्णता के साथ इस तरह अभिव्यक्त करें कि वह पाठक की स्मृति का स्थायी हिस्सा बन जाये। 'द्विज' जी चुनौतियों को चिह्नित करके न केवल अपनी पक्षधरता को स्पष्ट करते हैं बल्कि अपनी नयी जीवन-दृष्टि से उन सम्भावित शक्तियों को भी चिह्नित करते हैं जो मनुष्य के संघर्ष को प्रभावी या अप्रभावी बना सकती हैं।
इन ग़ज़लों में गति का तत्त्व प्रबल है। इन ग़ज़लों में साहसिकता और निर्भीकता के आवेग के सन्तुलन को बरकरार रखते हुए अनुशासन और गम्भीरता के साथ सटीक और प्रवाहमयी अभिव्यक्ति हुई है। स्फूर्त शब्द समूह, चुस्त वाक्य-विन्यास और भाषा के मुहावरे के जादुई प्रयोग से समृद्ध ये अश'आर वास्तविकता के धरातल से जन्म लेकर भी हमें अनूठे बिम्बों और प्रतीकात्मकता के नये संसार में ले जाते हैं। तग़ज्जुल के तमाम तत्त्वों से लबरेज़ इन अशआर से रूबरू होना सुधी पाठक के लिए अविस्मरणीय अनुभव होगा।
'द्विज' जी की वर्षों की सतत ग़ज़ल-साधना के पश्चात उनका यह ग़ज़ल संग्रह हमारे हाथों में आया है। अपने पहले ग़ज़ल संग्रह 'जन-गण-मन' की धूम की अनुगूँज के पार्श्व संगीत में 'सदियों का सारांश' एक ऐसा सहगान है जिससे सम्मोहित और प्रेरित होकर पाठक भी इसमें अपना स्वर जोड़ने के लिए विवश हो जायेंगे।
'सदियों का सारांश' मनुष्य के मनुष्य और प्रकृति से परस्पर सम्बन्धों की वास्तविकताओं और उसके स्वप्नों का सारांश है। समय और समाज की खुरदुरी परतों में गुम संवेदनाओं की शक्ति और साहस को प्राणवान करती हुईं ये ग़ज़लें मनुष्य के चिन्तन और सौन्दर्यबोध को नये आलोक में देखने को उद्यत करती हैं। यह संग्रह अपने विशिष्ट कथ्य और तग़ज्जुल ताज़गी के कारण ग़ज़ल के सबसे महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ संग्रहों में से एक है।