Sahitya Aur Hamara Samay
साहित्य और हमारा समय -
धर्म के रथ पर आरूढ़ सत्ता की उर्वशी का वरण करने के लिए अँधेरे के संवाहक मायावी संस्कृति के नाम पर अज्ञान की राक्षसी शक्ति की पूजा-अर्चना में लिप्त हैं। अविवेक की इस आँधी को नहीं रोका गया तो इक्कीसवीं शताब्दी का स्वागत हम त्रासदी के रूप में ही करेंगे।
भारतीय समाज में अनेक अंतर्विरोध रहे हैं। ये अन्तर्विरोध पूँजीवादी विकास के साथ-साथ और प्रखर हुए हैं। विकास की असन्तुलित गति के साथ ही, विभिन्न वर्गों के बीच की दूरी बढ़ रही है। पूँजी, उद्योगों पर एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। मुनाफ़ा और धन कमाने की अन्धी दौड़ ने सम्पूर्ण सामाजिक मूल्यों को गहरे संकट में डाल दिया है।
दलित उत्थान में भारतीय मुक्ति संग्राम, गाँधी और अम्बेडकर का महत्त्वपूर्ण योगदान है। संविधान ने इतिहास में पहली बार व्यक्ति की समानता और सम्मान की गारंटी दी। एक व्यक्ति एक वोट का सिद्धान्त दलितों की प्रगति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण साधन बना। इस नयी व्यवस्था और परिस्थितियों ने दलितों के एक वर्ग में नयी चेतना का संचार किया। उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनाया, राजनीतिक अधिकारों ने उनमें एक नया आत्मविश्वास पैदा किया। उच्च वर्ण के लोगों के इस विचार को मिथ्या सिद्ध किया कि दलित शासन करने में समर्थ नहीं है।
आज के सामाजिक यथार्थ को धर्म, संस्कृति और राजनीति की द्वन्द्वात्मकता के बीच ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ही समझा जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं प्रश्नों से साक्षात्कार करती है।