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Sahitya Aur Itihas Drishti

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Sahitya Aur Itihas Drishti
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"साहित्य का अस्तित्व समाज से अलग नहीं होता। साहित्य कर्म की पूरी प्रक्रिया सामाजिक व्यवहार का ही एक विशिष्ट रूप है। इसलिए वह समाज के इतिहास से अनेक रूपों से जुड़ी होती है और व्यापक सामाजिक इतिहास का अंग भी होती है।

साहित्य के इतिहास लेखन में विकास और परिर्वतन की व्याख्या होती है, परम्परा और नवीनता के द्वन्द्वात्मक सम्बन्धों का विश्लेषण होता है, परम्परा तथा रूढ़ि के बीच अलगाव होता है और भावी रचना दिशा का संकेत भी । इन्हीं स्थापनाओं को विस्तृत सैद्धान्तिक आधार देने के लिए प्रस्तुत पुस्तक की रचना की गयी है। इस क्रम में लेखक ने इतिहास लेखन की समस्त आधुनिक पद्धतियों की समीक्षा की है और इनके आलोक में हिन्दी साहित्य के तीन महान इतिहासकारों का मूल्यांकन किया है।"

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