Sahitya Aur Samay Anthsambandhon Par Punarvichar

In stock
Only %1 left
SKU
9789350002520
Rating:
0%
As low as ₹237.50 Regular Price ₹250.00
Save 5%

साहित्य और समय : अन्तःसम्बन्धों पुनर्विचार - 
किसी भी समाज में समय एक नहीं होता। एक ही साथ एक ही समय में समाज के बहुत सारे समुदाय अलग-अलग समय बोधों में जी रहे होते हैं। समाज के सीमान्त पर रहने वाले दलित और आदिवासी समूहों के लिए आज का समय वही नहीं जो किसी मेट्रोपोल में रहने वाले सम्भ्रान्त नागरिक का है। समय सामाजिक सन्दर्भों में समय का अर्थ निर्मित होता है जिसे विभिन्न समुदाय अपने-अपने अनुभवों के आधार पर उससे अपना सम्बन्ध जोड़ते हैं। समय की बृहत्ता को समुदाय अपने-अपने सन्दर्भों में विरचित करके अपना अर्थ ग्रहण करते हैं। इसीलिए साहित्य में भी समय की अवधारणा को एक रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। विभिन्न अनुभव क्षेत्रों से आये हुए रचनाकार अपनी-अपनी रचनाओं में एक ही समय का बोध कराते हैं। यह पुस्तक पहली बार विभिन्न काल खण्डों में अवस्थित विभिन्न विधाओं के रचनाकारों को एक साथ एकत्रित कर उनकी अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त होने वाले समय बोधों की पड़ताल करती है। इसीलिए इस पुस्तक में समकालीनता का भी एक होमोजेनियस अर्थ की जगह बहुल अर्थ व्यक्त होता है।

ISBN
9789350002520
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Sahitya Aur Samay Anthsambandhon Par Punarvichar
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/