Sahityik Vidhayein : Punarvichar

In stock
Only %1 left
SKU
9789388434874
Rating:
0%
As low as ₹375.25 Regular Price ₹395.00
Save 5%

प्रायः लोग विज्ञान तथा शास्त्र आदि को ‘साहित्य’ से पृथक् इस आधार पर मानते हैं कि विज्ञान तथा शास्त्र विचारप्रधान हैं, जबकि 'साहित्य' में 'आवेग' या 'भावना' होती है। इसीलिए वे साहित्यकार को एक भावुक अथवा भावना - प्रधान प्राणी ही मानते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं । वस्तुतः 'साहित्य' में भावना की प्रधानता होती अवश्य है, किन्तु भावना विवेक से अनुशासित होती है। विवेक बुद्धि का ही एक पक्ष है । इसलिए साहित्यकार जब अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करता है और कोई सफल साहित्यिक कृति रचता है तब वह बुद्धि से ही उसे रच पाता है । भावना तो हर व्यक्ति में होती है, उसे वह किस तरह ऐसे अभिव्यक्त करे कि साहित्यिक कृति को जन्म मिले; यह बौद्धिक प्रक्रिया साहित्यकार को ही आती है। हम इस प्रक्रिया को भाषा प्रयोग में देख पाते हैं ।

ISBN
9789388434874
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Sahityik Vidhayein : Punarvichar
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/